क्या कांग्रेस से लेकर भाजपा तक, मोहिउद्दीननगर में बनने वाली है नई राजनीतिक तस्वीर?

सारांश
Key Takeaways
- मोहिउद्दीननगर विधानसभा सीट पर जातीय समीकरणों का गहरा असर है।
- राजनीतिक बदलाव होते रहते हैं, जिससे यह सीट हाई-प्रोफाइल बनी रहती है।
- किसी एक पार्टी का लंबे समय तक कब्जा नहीं रहा है।
- इस सीट पर यादव और मुस्लिम मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- 2020 में भाजपा ने जीत हासिल की थी, लेकिन आगामी चुनाव में कड़ा मुकाबला है।
पटना, 8 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार की राजनीति में समस्तीपुर जिले की मोहिउद्दीननगर विधानसभा सीट का एक अद्वितीय स्थान है। यह सीट सिर्फ एक निर्वाचन क्षेत्र नहीं है, बल्कि बिहार के राजनीतिक बदलावों का आईना रही है। उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली यह सामान्य श्रेणी की सीट हर चुनाव में कड़े मुकाबले की गवाह बनती है।
मोहिउद्दीननगर सीट का राजनीतिक सफर 1952 में शुरू हुआ, जब देश में पहले आम चुनाव हुए। आजादी के बाद इस क्षेत्र पर कांग्रेस पार्टी का गहरा प्रभाव रहा। 1990 तक के कालखंड में कांग्रेस यहां की सबसे मजबूत पार्टी थी। 1952 के चुनाव में कांग्रेस के राम स्वरूप प्रसाद राय यहां के पहले विधायक चुने गए।
इस सीट के इतिहास में बिहार विभूति डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह का भी नाम दर्ज है, जिन्होंने 1985 से 1990 तक इस विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया।
हालांकि, बाद में बिहार की राजनीति में बदलाव आया और मोहिउद्दीननगर में भी कांग्रेस की वापसी नहीं हो पाई। इसके बाद सत्ता की चाबी विभिन्न पार्टियों के हाथ में जाती रही, जिससे यह सीट लगातार हाई-प्रोफाइल बनी रही।
इस सीट पर कांग्रेस के अलावा, राजद, जनता दल, भाजपा, लोजपा, जनता पार्टी, और निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत दर्ज की है।
पिछले कुछ चुनावों पर नजर डालें तो यह सीट किसी एक दल के लिए आसान नहीं रही है। यहां व्यक्तिगत कद और जातीय समीकरणों का प्रभाव साफ दिखता है।
2020 का विधानसभा चुनाव बेहद रोमांचक था, जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कैंडिडेट राजेश कुमार सिंह ने जीत हासिल की। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के एज्या यादव को हराया।
दिलचस्प बात यह है कि 2015 के चुनाव में समीकरण उलट गए थे। तब एज्या यादव ने राजेश कुमार सिंह को परास्त किया था, जो उस वक्त निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे थे।
मोहिउद्दीननगर सीट को बिहार के उन निर्वाचन क्षेत्रों में गिना जाता है, जहां जातीय गणित का प्रभाव साफ नजर आता है। यह एक सामान्य सीट है, लेकिन यहां यादव वोटरों का बाहुल्य है।
इस सीट पर यादव जाति के वोट 30 फीसदी से अधिक हैं, जो किसी भी चुनाव का रुख पलटने की क्षमता रखते हैं। यही कारण है कि राजद को इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने का लाभ मिलता रहा है।
लगभग 15 फीसदी के आसपास मुस्लिम वोटर भी हैं, जो यादव मतदाताओं के साथ मिलकर राजद के लिए एक बड़ा वोट बैंक बनाते हैं।
2011 की जनगणना और 2020 की मतदाता सूची के विश्लेषण के आधार पर मोहिउद्दीननगर विधानसभा में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या लगभग 45,464 है, जो कुल मतदाताओं का लगभग 17.19 फीसदी है।
अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं की संख्या बेहद कम, लगभग 26 है, जो कुल मतदाताओं का सिर्फ 0.01 फीसदी है।
आधिकारिक मतदाता सूची विश्लेषण के अनुसार, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 14,546 है, जो कुल मतदाताओं का लगभग 5.5 फीसदी है। मोहिउद्दीननगर की पहचान एक पूरी तरह से ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र के रूप में है।
2011 की जनगणना के अनुसार, मोहिउद्दीननगर में ग्रामीण मतदाताओं की संख्या 264,479 है, जो कुल मतदाताओं का 100 फीसदी है।
इस सीट पर शहरी मतदाताओं की संख्या शून्य है। 2020 के विधानसभा चुनाव के अनुसार, मोहिउद्दीननगर में मतदाताओं की कुल संख्या 264,479 थी। 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान, यहां कुल 385 मतदान केंद्र बनाए गए थे।
इस बार बिहार में दो चरणों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसमें पहला चरण 6 नवंबर को और दूसरा चरण 11 नवंबर को होना है। वोटों की गिनती 14 नवंबर को की जाएगी।
इस सीट पर भाजपा, जदयू, एलजेपी, और राजद-कांग्रेस गठबंधन के बीच हमेशा से कड़ा मुकाबला देखने को मिलता रहा है।
मोहिउद्दीननगर विधानसभा सीट बिहार की उन सीटों में से है, जहां 1990 के बाद से कोई एक पार्टी लंबे समय तक अपनी पकड़ नहीं बना पाई है। इससे यह पता चलता है कि यहां की जनता हर बार नए नेतृत्व को मौका देने से पीछे नहीं हटती। जातीय गणित, व्यक्तिगत उम्मीदवारी और गठबंधन की केमिस्ट्री, ये तीनों कारक ही यहां जीत का समीकरण तय करते हैं।
इस बार के चुनाव में वर्तमान विधायक राजेश कुमार सिंह (भाजपा) के लिए अपनी सीट बचाना और राजद की एज्या यादव या किसी अन्य मजबूत उम्मीदवार के लिए इस गढ़ को जीतना किसी महासंग्राम से कम नहीं है।