क्या 'सपने देखने वाला ही उन्हें साकार करता है'? कलाम साहब की सोच जो देश को दिखा रही है राह

सारांश
Key Takeaways
- सपने साकार करने के लिए मेहनत आवश्यक है।
- ईमानदारी और परिश्रम से सफलता प्राप्त हो सकती है।
- कलाम साहब का जीवन प्रेरणा देता है।
- प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता महत्वपूर्ण है।
- शिक्षा से ही देश का विकास संभव है।
नई दिल्ली, 26 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। तारीख थी 27 जुलाई, साल था 2015... और शाम का समय था। भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिलॉन्ग का एक विशाल सभागार छात्रों से भरा हुआ था। मंच पर एक प्रसिद्ध हस्ती सभी को संबोधित कर रहे थे, लेकिन अचानक वे चुप हो गए। अचानक वे लड़खड़ा कर गिरे और उठ नहीं सके। बाद में खबर आई कि उनका निधन हो गया। यह कोई और नहीं बल्कि मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम थे, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी देश को शक्तिसंपन्न और आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखा।
हालांकि, कलाम साहब अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज आज भी स्कूलों में, किताबों में, मिसाइल प्रक्षेपणों में और उन युवाओं के सपनों में गूंजती है, जो कुछ बड़ा करना चाहते हैं।
एपीजे अब्दुल कलाम का पूरा नाम डॉ. अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम है। उनका जीवन साधारण नहीं, बल्कि एक मछुआरे के बेटे की असाधारण कहानी है, जिसने रामेश्वरम की गलियों से राष्ट्रपति भवन की दहलीज तक का सफर तय किया। उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के एक छोटे से गांव रामेश्वरम में हुआ। उनके पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन जीवन की सच्ची शिक्षा उन्होंने उन्हीं से सीखी, जो थी ईमानदारी, परिश्रम और दूसरों की सेवा। कलाम साहब ने अपनी आत्मकथा 'विंग्स ऑफ फायर' में इसका उल्लेख किया है।
कलाम साहब ने 'मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी' से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और फिर अपने जीवन को राष्ट्रनिर्माण के यज्ञ में समर्पित कर दिया। डीआरडीओ में होवरक्राफ्ट पर काम करते हुए उन्होंने जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण सीखा, वह आगे चलकर इसरो में एक महान परिवर्तन का कारण बना। वहां उन्होंने भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 विकसित किया, जिससे 1980 में रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। यह क्षण भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक मील का पत्थर था।
यहीं से कलाम साहब को 'मिसाइल मैन' का नाम मिला, जो उन्हें अमर बना गया। उन्होंने पृथ्वी और अग्नि जैसे स्वदेशी मिसाइल विकसित किए। इससे न केवल भारत को मिसाइल तकनीक में आत्मनिर्भरता मिली, बल्कि सामरिक दृष्टि से आत्मगौरव और आत्मविश्वास भी। 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षणों में उनकी भूमिका रणनीतिक और निर्णायक रही।
प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद (टीआईएफएसी) के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने 500 विशेषज्ञों की मदद से प्रौद्योगिकी विजन 2020 पर पहुंचकर भारत को वर्तमान विकासशील स्थिति से विकसित राष्ट्र में बदलने का रोडमैप प्रस्तुत किया। डॉ. कलाम ने नवंबर 1999 से नवंबर 2001 तक कैबिनेट मंत्री के पद पर भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कार्य किया।
कलाम साहब की एक और महत्वपूर्ण भूमिका भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में रही। 2002 में जब उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली, तब देश को एक ऐसा राष्ट्रपति मिला जो जनता के दिलों में बसता था। उन्होंने राष्ट्रपति भवन को सत्ता का किला नहीं, बल्कि जनसंपर्क का केंद्र बना दिया। उनकी सादगी और आम लोगों के साथ संवाद ने उन्हें 'जनता का राष्ट्रपति' बना दिया।
2007 में राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद भी उनका सफर थमा नहीं। वे विश्वविद्यालयों में पढ़ाते रहे, छात्रों से संवाद करते रहे, और युवाओं को प्रेरणा देते रहे। उन्होंने कई प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं, जो आज भी युवाओं की सोच को दिशा देती हैं। डॉ. कलाम के विचारों में भारत का भविष्य बसता था।
अपने साहित्यिक प्रयासों के दौरान, डॉ. कलाम की चार महत्वपूर्ण पुस्तकें—'विंग्स ऑफ फायर,' 'इंडिया 2020—ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम,' 'माई जर्नी' और 'इग्नाइटेड माइंड्स - अनलीशिंग द पावर विदिन इंडिया' भारत और विदेशों में रहने वाले भारतीयों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गई हैं।
उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न (1997) से सम्मानित किया गया। इससे पहले, उन्हें पद्म भूषण (1981) और पद्म विभूषण (1990) भी मिल चुके थे। 30 से अधिक विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया। लेकिन, उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार बच्चों की वह मासूम मुस्कान थी, जब वे कहते थे, 'मैं भी डॉ. कलाम बनना चाहता हूँ।'
आज जब हम डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हैं, तो यह केवल श्रद्धांजलि नहीं है – यह एक प्रेरणा है। उनके विचार, उनके मूल्य, और उनका दृष्टिकोण आज के भारत के लिए उतने ही जरूरी हैं जितने 1998 के पोखरण परीक्षणों के समय थे। उनका जीवन बताता है कि सपने वो नहीं जो हम सोते हुए देखते हैं, बल्कि वो हैं जो हमें सोने नहीं देते। आज देश के लाखों युवा उन्हीं सपनों को संजोए आगे बढ़ रहे हैं।