क्या 'वंदे मातरम' का वर्तमान स्वरूप कांग्रेस कार्यसमिति का सामूहिक निर्णय था? : जयराम रमेश

Click to start listening
क्या 'वंदे मातरम' का वर्तमान स्वरूप कांग्रेस कार्यसमिति का सामूहिक निर्णय था? : जयराम रमेश

सारांश

क्या 'वंदे मातरम' का वर्तमान स्वरूप कांग्रेस कार्यसमिति का सामूहिक निर्णय था? इस सवाल का जवाब देते हुए जयराम रमेश ने महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संदर्भों को साझा किया। जानें कि उन्होंने किस तरह सत्तारूढ़ दल पर आरोप लगाया और क्या है इस मुद्दे का राजनीतिक महत्व।

Key Takeaways

  • 'वंदे मातरम' का वर्तमान स्वरूप कांग्रेस कार्यसमिति का सामूहिक निर्णय है।
  • इस निर्णय में कई महान नेता शामिल थे।
  • इतिहास का राजनीतिक उपयोग एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
  • सत्तारूढ़ दल पर आरोप लगाए गए हैं कि वे डिस्ट्रोरियन बन गए हैं।
  • इतिहास को सही संदर्भ में समझना आवश्यक है।

नई दिल्ली, 10 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' का वर्तमान स्वरूप अपनाने का निर्णय कांग्रेस कार्यसमिति ने सामूहिक रूप से लिया था। यह एक सामूहिक फैसला था। 'वंदे मातरम' की 150वीं वर्षगांठ पर आयोजित चर्चा में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने यह बात कही।

उन्होंने कहा कि उस समय निर्णय लेने वाली कांग्रेस कार्यसमिति में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, रवींद्रनाथ टैगोर और जवाहरलाल नेहरू जैसे शीर्ष नेता शामिल थे।

गौरतलब है कि राज्यसभा में 'वंदे मातरम' पर चर्चा प्रारंभ करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि वर्ष 1937 में 'वंदे मातरम' की स्वर्ण जयंती हुई थी, तब जवाहरलाल नेहरू ने 'वंदे मातरम' के दो टुकड़े करके उसे दो अंतरों तक सीमित करने का काम किया था। वहीं से तुष्टीकरण की शुरुआत हुई। वह तुष्टीकरण जाकर देश के विभाजन में बदला।

इसके जवाब में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने बुधवार को कहा कि संसद में चल रही चर्चाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इतिहास की समझ बहुत कम और इतिहास का राजनीतिक दुरुपयोग बहुत अधिक है।

उन्होंने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ दल के कई नेता इतिहासकार बनने निकले थे, लेकिन वे डिस्ट्रोरियन यानी इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने वाले बन गए हैं।

वंदे मातरम’ की रचना के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए जयराम रमेश ने कहा कि लोकसभा और राज्यसभा में हुई बहसों से यह साफ हो गया है कि हमारी राजनीति में इतिहास बहुत कम है और हमारे इतिहास में राजनीति बहुत ज्यादा। प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और सत्ता पक्ष के अन्य नेता इतिहासकार बनना चाहते थे, लेकिन वे डिस्ट्रोरियन बनकर रह गए हैं।

उन्होंने नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के तर्कों को दोहराते हुए कहा कि 'वंदे मातरम' का वर्तमान स्वरूप अपनाने का निर्णय कांग्रेस कार्यसमिति का सामूहिक फैसला था। यह फैसला कांग्रेस कार्यसमिति में शामिल डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, रवींद्रनाथ टैगोर और जवाहरलाल नेहरू जैसे शीर्ष नेताओं का सामूहिक फैसला था।

जयराम रमेश ने प्रश्न करते हुए कहा कि जब केंद्र सरकार जवाहरलाल नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगाती है, तो क्या वह इन सभी महान नेताओं पर भी वही आरोप लगाती है? सरकार न केवल नेहरू का, बल्कि रवींद्रनाथ टैगोर का भी अपमान कर रही है।

उन्होंने पूछा कि यह सरकार क्या कर रही है। उन्होंने बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय बनाम रवींद्रनाथ टैगोर करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह केवल नेहरू का ही नहीं, बल्कि नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर का भी अपमान है।

कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि 'वंदे मातरम' पर चर्चा आयोजित करने का सरकार का उद्देश्य केवल जवाहरलाल नेहरू का अपमान करना है। उन्होंने कहा कि जब वे नेहरू का अपमान करते हैं, तो वे स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने वाले सभी लोगों का अपमान करते हैं।

चर्चा के दौरान जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय द्वारा लिखित पुस्तक ‘इक्वेलिटी’ का भी उल्लेख किया, जिसमें बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की रचना ‘साम्य’ का अनुवाद शामिल है। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने जाति व्यवस्था को देश की सबसे बड़ी समस्या बताया है। जब हम बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की बात करते हैं, तो हमें उनके इस पक्ष को भी याद रखना चाहिए।

Point of View

यह स्पष्ट होता है कि राजनीति में इतिहास का उपयोग कई बार स्वार्थी उद्देश्यों के लिए किया जाता है। जयराम रमेश की बातें इस बात का प्रमाण हैं कि सच्चाई को समझना और सही ढंग से प्रस्तुत करना कितना आवश्यक है। हमें इतिहास को उसके सही संदर्भ में समझना चाहिए।
NationPress
10/12/2025

Frequently Asked Questions

क्या 'वंदे मातरम' का वर्तमान स्वरूप कांग्रेस कार्यसमिति का सामूहिक निर्णय था?
हाँ, यह निर्णय कांग्रेस कार्यसमिति ने सामूहिक रूप से लिया था, जिसमें कई प्रमुख नेता शामिल थे।
कौन-कौन से नेता उस समय कांग्रेस कार्यसमिति में थे?
उस समय डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, रवींद्रनाथ टैगोर और जवाहरलाल नेहरू जैसे शीर्ष नेता शामिल थे।
क्या 'वंदे मातरम' का अपमान किया जा रहा है?
'वंदे मातरम' पर चर्चा करते समय कुछ नेता इसे तुष्टीकरण से जोड़ते हैं, जो ऐतिहासिक दृष्टि से विवादित है।
जयराम रमेश ने क्या आरोप लगाया?
उन्होंने आरोप लगाया कि कई नेता इतिहासकार बनना चाहते थे, लेकिन वे डिस्ट्रोरियन बन गए हैं।
क्या यह मुद्दा केवल कांग्रेस का है?
नहीं, यह मुद्दा सभी राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इतिहास का सही उपयोग राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
Nation Press