क्या लखपति दीदी बनाना मेरे जीवन का मिशन है: शिवराज सिंह चौहान?

सारांश
Key Takeaways
- लखपति दीदी योजना महिलाओं के सशक्तिकरण का एक बड़ा कदम है।
- महिलाओं की कृषि और पशुपालन में महत्वपूर्ण भूमिका है।
- केंद्र सरकार स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बना रही है।
- बिना महिलाओं के खेती अधूरी है।
- यह योजना ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगी।
भोपाल, 15 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि समाज में पुरुष और महिला के बीच भेदभाव को देखा, परंतु उन्होंने हमेशा बहनों के लिए कार्य किया है और अब उनकी लखपति दीदी बनाना जीवन का प्रमुख मिशन है। लाड़ली बहनें अब लखपति दीदी बनेंगी।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के रवींद्र भवन में आयोजित महिला किसान दिवस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि धरती के संसाधनों पर बहन-बेटियों का भी हक है। हवा, पानी, खेत और खनिज सभी औरतों के भी हिस्से में आते हैं। उन्होंने कहा कि बचपन से वे देखते आए हैं कि बेटियों को परिवार में न्याय नहीं मिलता था। मन में हमेशा तड़प होती थी कि एक ही भगवान ने आदमी और औरत दोनों को बनाया है, तो औरत के साथ भेदभाव क्यों? जब वे कुछ नहीं थे, तब भी उन्होंने बहनों के लिए कार्य किया।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ‘लखपति दीदी’ योजना अब उनके जीवन का मिशन बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार भी लाल किले की प्राचीर से इस योजना का उल्लेख किया, जिससे इस अभियान की महत्ता और बढ़ गई है। राज्य का मुख्यमंत्री रहते हुए जिस दिशा में कार्य शुरू किया था, अब दिल्ली में उन्हें कृषि और ग्रामीण विकास विभाग की जिम्मेदारी मिली है और लखपति दीदी का विभाग भी उनके पास आया है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत आने वाला स्वयं सहायता समूह विभाग भी इसी मंत्रालय के अंतर्गत है और इसकी नियमित समीक्षा वे करते हैं।
उन्होंने कहा कि हर महीने रियल टाइम में देखते हैं कि कितनी दीदी लखपति बनीं और उनके लिए क्या-क्या कदम उठाए गए हैं। केंद्र सरकार स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाने के लिए लगातार सहायता दे रही है और उन्होंने इसे अपने जीवन का मिशन बना लिया है। लाड़ली बहनें अब लखपति दीदी बनेंगी।
शिवराज सिंह चौहान ने खेती में महिलाओं की हिस्सेदारी की चर्चा करते हुए कहा कि हिंदुस्तान की कृषि को बदलना है, खेती में कई प्रयोग करने हैं। खेती जरूरी है, इसके बिना काम नहीं चल सकता। भारत की असली आत्मा उसके गांवों में बसती है। बिना खेती के गांव अधूरे हैं, और बिना महिलाओं के खेती अधूरी है। कृषि कार्यों में महिलाओं का योगदान सदियों से रहा है। पुराने जमाने में जब पुरुष हल चलाते थे, तो बहनें बीज डालती थीं। खेतों की कटाई बहनें करती थीं, और आज भी करती हैं। अगर कोई सब्जी लगाई जाए, तो टमाटर, मिर्च और बाकी सब्जियों की तुड़ाई का काम बहनें ही करती हैं।
उन्होंने कहा कि पशुपालन में भी महिलाओं की भूमिका बेहद अहम है। चारा काटना, दूध-दही जमाना और मक्खन निकालना ये सब काम बहनें करती रही हैं। खेती बिना बहनों के तब भी नहीं होती थी और बिना बहनों के पशुपालन अब भी नहीं होता है। महिलाएं कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूत धुरी हैं और महिलाओं के सशक्तिकरण से ही ग्रामीण भारत आत्मनिर्भर बन सकता है।