क्या लालू प्रसाद यादव के परिवार में सत्ता हथियाने की लड़ाई चल रही है?
सारांश
Key Takeaways
- रोहिणी आचार्य का इस्तीफा भाई-भतीजावाद की पुष्टि करता है।
- भाजपा ने परिवार के भीतर की राजनीति पर सवाल उठाए हैं।
- लालू यादव की परिवारिक राजनीति के दुष्परिणाम सामने आए हैं।
- बिहार की राजनीति में यह स्थिति जटिल हो सकती है।
नई दिल्ली, 16 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। दिल्ली सरकार के मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य द्वारा लगाए गए आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इस परिवार का बिहार की जनता से कोई संबंध नहीं है। यहाँ केवल सत्ता के लिए संघर्ष जारी है।
सिरसा ने राष्ट्र प्रेस के साथ बातचीत में कहा कि रोहिणी आचार्य का इस्तीफा इस बात की पुष्टि करता है जो भाजपा ने लगातार कहा है कि वहां भाई-भतीजावाद है और उनकी लड़ाई सिर्फ सत्ता की है। राजद में बिहार के विकास के लिए कभी भी कोई प्रयास नहीं किए गए। यह अत्यंत दुखद है कि जिन्होंने वर्षों तक शासन किया, उनके मन में देश के प्रति कोई भावना नहीं थी।
रोहिणी आचार्य के आरोपों के बाद बिहार की राजनीतिक गतिविधियाँ भी तेज हो गई हैं।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने कहा कि रोहिणी आचार्य ने लालू प्रसाद यादव की जान बचाने के लिए अपनी किडनी दान की थी, लेकिन जिस प्रकार से परिवार ने उन्हें अपमानित करके घर से बाहर निकाला, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। मैं लालू प्रसाद और राबड़ी देवी से निवेदन करता हूँ कि वो इस मामले पर ध्यान दें, क्योंकि यदि कोई बाहरी व्यक्ति परिवार में घुसकर फूट डालने लगे या परिवार के सदस्यों का अपमान करे, तो इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यह उनका निजी मामला है, लेकिन यह सोशल मीडिया और टेलीविजन पर उजागर हो गया है।
भाजपा नेता नितिन नबीन ने कहा कि निश्चित रूप से, अगर घर में अनादर होता है, तो इससे किसी को भी ठेस पहुंचती है। ये आंतरिक मामले हैं, और मुझे बेहतर लगेगा कि मैं इन पर टिप्पणी न करूँ।
उन्होंने कहा कि लालू यादव ने जिस प्रकार से परिवार के भीतर राजनीति आरंभ की, उसके नकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। तेजस्वी यादव को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि हार के लिए कौन जिम्मेदार है, लेकिन वे ऐसा करने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।
विपक्ष के एसआईआर और 'वोट चोरी' के दावों पर कहते हुए राहुल गांधी अपनी हार को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं और उन्हें इसकी समझ नहीं है, इस कारण उन्हें कई नामों से संबोधित किया गया है। जब वह कहीं और चुनाव जीतते हैं, तो चुनाव आयोग की याद नहीं आती, लेकिन जब भाजपा जीतती है, तभी याद आती है। राहुल की टिप्पणियों का प्रभाव केवल पाकिस्तान में ही दिखाई दे रहा है।