क्या लालू यादव 'धृतराष्ट्र' की तरह पुत्रमोह में बिहार में उन्माद पैदा करना चाहते हैं?: विजय सिन्हा

सारांश
Key Takeaways
- अमृत लक्खी महोत्सव बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है।
- विपक्ष की नकारात्मक राजनीति का जवाब देना ज़रूरी है।
- शांति और समृद्धि की ओर बिहार का बढ़ना आवश्यक है।
लखीसराय, 6 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने शनिवार को यहां 'अमृत लक्खी महोत्सव' यात्रा में भाग लिया। यह यात्रा बाबा दुखहरण की पूजा-अर्चना के साथ प्रारंभ हुई और हाथिदह, बादपुर, बड़हिया, बालगुद्दर होते हुए अशोकधाम में बाबा महादेव पर जलार्पण के साथ संपन्न हुई।
इस अवसर पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए उपमुख्यमंत्री सिन्हा ने कहा कि सनातन संस्कृति में सभी चर और चराचर का सम्मान किया जाता है और उन्होंने नकारात्मक मानसिकता को समाप्त करने की ईश्वर से प्रार्थना की। उन्होंने विपक्ष को निशाने पर लेते हुए कहा कि विपक्ष के लोग शक्ति का अपमान करते हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि इस सृष्टि में जो शक्ति की भक्ति करेगा, उसे ही मुक्ति मिलेगी। जो शक्ति को अपमानित करता है, उसकी मुक्ति संभव नहीं है। शक्ति स्वयं प्रकट होकर ऐसी असुर प्रवृत्तियों का नाश करती है।
उन्होंने लालू यादव के गुजरात में फैक्ट्री लगाने के आरोपों पर कहा कि बिहार के लोगों को पलायन के लिए विवश करने वाले अब अंतिम समय में बैठे हैं। वे धृतराष्ट्र की तरह पुत्रमोह में फिर से बिहार में उन्माद पैदा कर सामाजिक सौहार्द तोड़कर बिहार को बर्बाद करने का खेल खेलना चाहते हैं। लेकिन अब बिहार के लोग उनकी बात नहीं सुनेंगे।
उन्होंने कहा कि बिहार के लोग शांति के साथ अमृत महोत्सव के दिन से समृद्धि की ओर बढ़ेंगे। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा जिस संकल्प की शुरुआत की गई है, उसे बिहार के लोग आगे बढ़ाएंगे। इससे पहले उपमुख्यमंत्री सिन्हा ने पावन अनंत चतुर्दशी के शुभ अवसर पर बेगूसराय के सिमरिया धाम से लखीसराय के अशोकधाम तक की अमृत लक्खी महोत्सव यात्रा का शुभारंभ किया।
इस यात्रा से पहले उन्होंने चौंसठ योगिनी माता मंदिर में पूजा-अर्चना कर पूरे क्षेत्रवासियों की सुख-समृद्धि की कामना की। उन्होंने कहा कि सिमरिया धाम जो समुद्र मंथन का केंद्र रहा है, इसी वजह से भी इसे हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान प्राप्त है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश को यहीं पर रखा गया था, जिसके कारण इसे आदि कुंभ स्थली के रूप में जाना जाता है। इस पवित्र स्थान से शुरू की गई यह यात्रा, आस्था और भक्ति का एक अद्भुत संगम है, जो हमें हमारी सुदीर्घ सांस्कृतिक विरासत से जोड़ता है।