क्या लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह बने भारतीय सेना के उप सेनाध्यक्ष?

सारांश
Key Takeaways
- लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह का उप सेनाध्यक्ष बनना भारतीय सेना के लिए गर्व की बात है।
- उनका अनुभव और युद्ध कौशल सीमाओं की सुरक्षा में अहमियत रखता है।
- उन्होंने शहीदों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।
- उनका सैन्य करियर ३८ वर्षों का है जिसमें कई महत्वपूर्ण अभियानों में भाग लिया।
- उन्हें अति विशिष्ट सेवा मेडल और सेना मेडल से सम्मानित किया जा चुका है।
नई दिल्ली, १ अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह ने भारतीय थल सेना के उप सेनाध्यक्ष का पद संभाला है। यह वरिष्ठ अधिकारी पैरा रेजिमेंट (स्पेशल फोर्सेस) की चौथी बटालियन से जुड़े हुए हैं और इन्हें दिसंबर १९८७ में कमीशन प्राप्त हुआ।
इनकी शिक्षा ला मार्टिनियर कॉलेज, लखनऊ, लखनऊ विश्वविद्यालय और भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में हुई। एक युवा अधिकारी के रूप में, सेकेंड लेफ्टिनेंट पुष्पेन्द्र सिंह ने भारतीय शांति सेना के तहत श्रीलंका में चल रहे अभियानों में अपनी बटालियन को जॉइन किया था। ४ पैरा को अक्टूबर १९८७ में श्रीलंका में तैनात किया गया था, जहाँ इन्होंने जाफना और बाद में किलिनोच्चि में महत्वपूर्ण अभियानों में भाग लिया। २२ जुलाई १९८९ को, सेकेंड लेफ्टिनेंट पुष्पेन्द्र सिंह ईरानामाडु से किलिनोच्चि की ओर जा रही एक १३-सदस्यीय क्विक रिएक्शन टीम का नेतृत्व कर रहे थे, जब उनकी टुकड़ी पर घात लगाकर हमला किया गया। अत्यंत विषम परिस्थितियों में उन्होंने साहसपूर्ण नेतृत्व करते हुए जवाबी कार्रवाई की, जिसमें चार एलटीटीई आतंकवादी मारे गए और कई अन्य घायल हुए।
इस भीषण संघर्ष में उनकी टीम के पांच वीर सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की, जबकि सेकेंड लेफ्टिनेंट पुष्पेन्द्र सिंह स्वयं तथा दो अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। उप सेनाध्यक्ष का कार्यभार संभालने पर, लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह ने उन पांच शहीदों के परिजनों और वीर नारियों को इस पावन क्षण का साक्षी बनने हेतु आमंत्रित किया। उन्होंने शहीद परिजनों के साथ नेशनल वॉर मेमोरियल पहुंचकर एटरनल फ्लेम पर श्रद्धासुमन अर्पित किए और त्याग चक्र पर पुष्पचक्र अर्पित किया, जहाँ इस अभियान में शहीद हुए पाँचों वीरों के नाम अंकित हैं।
इस पदभार ग्रहण करने से पूर्व, वह सेना मुख्यालय में महानिदेशक, परिचालन लॉजिस्टिक्स एवं रणनीतिक आवागमन के रूप में कार्यरत थे। उन्होंने अपने सैन्य करियर में ऑपरेशन पवन, ऑपरेशन मेघदूत, ऑपरेशन ऑर्किड और ऑपरेशन रक्षक जैसी महत्वपूर्ण सैन्य कार्रवाइयों में भाग लिया है। अपने ३८ वर्षों के उत्कृष्ट सैन्य करियर में, उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण कमान और स्टाफ नियुक्तियां संभाली हैं।
उन्होंने कश्मीर घाटी और नियंत्रण रेखा पर एक स्पेशल फोर्स यूनिट की कमान संभाली। इसके बाद उन्होंने एक इन्फैंट्री ब्रिगेड और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर ऑपरेशन स्नो लेपर्ड के दौरान एक माउंटेन डिवीजन की कमान भी ली। वे हिमाचल प्रदेश में स्थित एक कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग भी रहे, जो जम्मू, सांबा और पठानकोट जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है। उन्हें पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं के संचालनात्मक परिदृश्य की गहन जानकारी और रणनीतिक समझ प्राप्त है।
उन्होंने डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज वेलिंगटन से स्टाफ कोर्स, कॉलेज ऑफ डिफेंस मैनेजमेंट सिकंदराबाद से हायर डिफेंस मैनेजमेंट कोर्स तथा आईआईपीए से एडवांस प्रोफेशनल प्रोग्राम इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन किया है। उन्होंने ओस्मानिया यूनिवर्सिटी से प्रबंधन अध्ययन में स्नातकोत्तर और पंजाब विश्वविद्यालय से एम.फिल. की उपाधि प्राप्त की है। राष्ट्र सेवा में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें अति विशिष्ट सेवा मेडल तथा सेना मेडल से सम्मानित किया गया है।