क्या लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा को विभिन्न नामों से जाना जाता है?
सारांश
Key Takeaways
- छठ पूजा का आयोजन सूर्य देवता और माता छठी की आराधना के लिए किया जाता है।
- यह पर्व चार दिनों तक चलता है और निर्जला उपवास का पालन किया जाता है।
- भक्त अपनी आस्था और श्रद्धा से सीधे भगवान से प्रार्थना करते हैं।
- इस पर्व को सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है।
- छठ पूजा को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे छठी पूजा, डाला पूजा आदि।
नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा, जो रामायण और महाभारत के समय से चली आ रही है, अब वैश्विक पहचान हासिल कर चुकी है। इसे लोग धूमधाम से मनाते हैं।
इस पर्व में भगवान सूर्य और माता छठी की आराधना की जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य शारीरिक कष्टों से मुक्ति, संतान की रक्षा और परिवार में सुख-समृद्धि लाना है।
यह पर्व नहाय-खाय से प्रारंभ होता है और चार दिनों तक चलता है। व्रति लोग आमतौर पर निर्जला उपवास रखते हैं, जो 36 घंटे या उससे भी अधिक का होता है। पहले दिन बाहरी शुद्धि की जाती है, दूसरे दिन खरना के माध्यम से आंतरिक शुद्धि होती है, और फिर अगले दो दिनों में सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, पहले डूबते सूर्य और फिर उगते सूर्य को।
इस महापर्व की विशेषता यह है कि इसमें किसी पंडित या पुरोहित की आवश्यकता नहीं होती। भक्त सीधे भगवान से प्रार्थना करते हैं।
छठ पूजा को भारत के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। सबसे सामान्य नाम है छठ पूजा, लेकिन इसे छठी पूजा, डाला पूजा, छठ मईया पूजा, सूर्य षष्ठी, कार्तिक छठ, चैती छठ और रवि षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व में बांस के बने सूप और डाले का विशेष महत्व है, इसीलिए इसे डाला छठ भी कहा जाता है।
छठ पूजा साल में दो बार मनाई जाती है, पहली बार चैती छठ के रूप में, जो चैती महीने में होता है, और दूसरी बार कार्तिक छठ के रूप में।
इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें व्रति की श्रद्धा और समर्पण ही पूजा का आधार है। निर्जला उपवास, सूर्य को अर्घ्य देना और पवित्रता के नियमों का पालन भक्तों की भक्ति और संयम की परीक्षा है।
छठ पूजा महज एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह लोगों की भावनाओं और आस्था से जुड़ा एक महत्वपूर्ण उत्सव है।