क्या परबत्ता विधानसभा सीट पर जदयू की पकड़ मजबूत है और राजद को कड़ी चुनौती मिल रही है?

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क्या परबत्ता विधानसभा सीट पर जदयू की पकड़ मजबूत है और राजद को कड़ी चुनौती मिल रही है?

सारांश

बिहार विधानसभा चुनाव में परबत्ता सीट पर जदयू की पकड़ मजबूत है। यहां हाल के वर्षों में कड़ी प्रतिस्पर्धा देखने को मिली है। जानिए इस सीट का राजनीतिक इतिहास और आगामी चुनावों में संभावनाएं।

Key Takeaways

  • परबत्ता विधानसभा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति कृषि के लिए अनुकूल है।
  • हाल के वर्षों में जदयू और राजद के बीच कड़ा मुकाबला है।
  • 2024 के चुनाव में एनडीए की स्थिति मजबूत बनी हुई है।
  • परबत्ता की कुल जनसंख्या 5,41,929 है।
  • कृषि, बाढ़ और बेरोजगारी जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण हैं।

खगड़िया, 26 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव की गतिविधियों में गति के साथ, खगड़िया जिले का परबत्ता विधानसभा क्षेत्र चर्चा का विषय बना हुआ है। हाल के वर्षों में इस सीट पर हार-जीत के बीच का अंतर बहुत कम रहा है। जदयू, राजद और लोजपा के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला है, लेकिन इस बार एनडीए की मजबूती के कारण विपक्ष को अधिक मेहनत की आवश्यकता है।

परबत्ता की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, यह क्षेत्र गंगा नदी से मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और अपनी उपजाऊ भूमि के लिए जाना जाता है, जो इसे एक कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था का केंद्र बनाती है। प्राचीन काल में, गंगा व्यापार मार्ग के रूप में महत्वपूर्ण थी, जिसने परबत्ता को समृद्धि प्रदान की। इसके निकटवर्ती शहरों में खगड़िया (37 किमी पश्चिम), मुंगेर (40 किमी दक्षिण-पश्चिम), भागलपुर (50 किमी पूर्व), बेगूसराय (60 किमी उत्तर-पश्चिम), और पटना (170 किमी पश्चिम) शामिल हैं।

2008 के परिसीमन के बाद, परबत्ता विधानसभा क्षेत्र में परबत्ता प्रखंड, गोगरी प्रखंड की रतन, गोगरी-जमालपुर नगर क्षेत्र, जामलपुर उत्तर, जामलपुर दक्षिण, रामपुर, मुस्कीपुर, पसाहा, बसुदेओपुर, इतहरी, शेरचकला, पैकांत, देवथा, गौछारी और मदारपुर पंचायतें शामिल की गईं। यह खगड़िया लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा और सामान्य (गैर-आरक्षित) सीट है।

राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो 1951 में स्थापित परबत्ता ने अब तक 19 विधायक चुने हैं, जिसमें 2004 का उपचुनाव भी शामिल है। कांग्रेस ने इस सीट पर सात बार जीत हासिल की, आखिरी बार 1985 में, जो उसका स्वर्णिम काल था। जदयू ने पांच बार, राजद और जनता दल ने दो-दो बार, जबकि समाजवादी पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और निर्दलीय ने एक-एक बार जीत दर्ज की।

हाल के वर्षों में, यह सीट नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच सत्ता संघर्ष का केंद्र रही है। राजद ने 2000 में पहली जीत हासिल की, लेकिन जदयू ने 2005, 2015 और 2020 में अपनी पकड़ बनाए रखी। 2010 में राजद ने 808 वोटों के मामूली अंतर से जीत प्राप्त की थी।

2020 का चुनाव बहुत रोमांचक रहा, जब चिराग पासवान की लोजपा ने जदयू को हराने के लिए उम्मीदवार उतारा, जिससे मुकाबला बहुत कड़ा हो गया। जदयू उम्मीदवार मात्र 951 वोटों से जीते। 2024 के लोकसभा चुनाव में, जदयू और लोजपा (रामविलास) के गठबंधन ने परबत्ता में 33,193 वोटों की बढ़त हासिल की, जिससे एनडीए की स्थिति मजबूत हुई।

चुनाव आयोग के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, परबत्ता की कुल आबादी 5,41,929 है, जिसमें 2,82,089 पुरुष और 2,59,840 महिलाएं शामिल हैं। कुल मतदाता 3,22,082 हैं, जिनमें 1,70,385 पुरुष, 1,51,688 महिलाएं और 9 थर्ड जेंडर हैं।

2010 में 58.12 प्रतिशत, 2015 में 60.45 प्रतिशत और 2020 में 57.89 प्रतिशत मतदान हुआ। कृषि, बाढ़ और बेरोजगारी जैसे मुद्दे यहां के मतदाताओं को प्रभावित करते हैं।

Point of View

परबत्ता विधानसभा क्षेत्र बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यहां की राजनीतिक गतिविधियां न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित करती हैं। इस सीट पर चुनावी परिणामों का नतीजा आगामी लोकसभा चुनावों पर गहरा असर डाल सकता है।
NationPress
26/10/2025

Frequently Asked Questions

परबत्ता विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास क्या है?
परबत्ता विधानसभा क्षेत्र ने 1951 से अब तक 19 विधायक चुने हैं, जिसमें कांग्रेस, जदयू और राजद जैसी प्रमुख पार्टियों ने जीत हासिल की है।
क्या परबत्ता विधानसभा सीट पर एनडीए की स्थिति मजबूत है?
जी हां, हाल के चुनावों में एनडीए की स्थिति मजबूत रही है, जिससे विपक्ष को चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
परबत्ता विधानसभा क्षेत्र की जनसंख्या कितनी है?
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, परबत्ता की कुल जनसंख्या 5,41,929 है।
इस सीट पर पिछले चुनावों का मतदान प्रतिशत क्या रहा है?
2010 में 58.12%, 2015 में 60.45%, और 2020 में 57.89% मतदान हुआ।
परबत्ता विधानसभा क्षेत्र में मुख्य मुद्दे कौन से हैं?
यहां कृषि, बाढ़ और बेरोजगारी जैसे मुद्दे मतदाताओं को प्रभावित करते हैं।