क्या राहुल गांधी लोकतंत्र बचाने के रास्ते पर निकले हैं? : उदित राज

सारांश
Key Takeaways
- राहुल गांधी की यात्रा लोकतंत्र को बचाने का माध्यम है।
- बिहार की जनता ने यात्रा का समर्थन किया है।
- यात्रा बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दों को उठाती है।
- भाजपा पर आरोप लगाए गए हैं कि उन्होंने यात्रा को बदनाम करने की कोशिश की।
- सुप्रीम कोर्ट में संघर्ष जारी रहेगा।
नई दिल्ली, 1 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उदित राज ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा के समापन पर कहा कि राहुल गांधी लोकतंत्र को बचाने के मार्ग पर निकले हैं और निश्चित रूप से उन्हें सफलता मिलेगी। बिहार की जनता ने इस यात्रा को अपार प्रेम दिया है।
राष्ट्र प्रेस से बातचीत में उन्होंने कहा कि यदि लोकतंत्र सुरक्षित नहीं रहेगा, तो बेरोजगारी और महंगाई पर चर्चा कैसे की जा सकती है?
उन्होंने कहा कि जब कोई सरकार अपने संसाधनों का गलत उपयोग करके सत्ता में आती है, तो वह गरीबों, किसानों, छात्रों और युवाओं की समस्याओं का ध्यान कैसे रखेगी? इसलिए, राहुल गांधी के नेतृत्व में 'वोटर अधिकार यात्रा' ही समाधान है। यह बेरोजगारी समाप्त करने, महंगाई घटाने और लोकतंत्र की रक्षा का रास्ता है।
कांग्रेस नेता ने इस यात्रा को लोकतंत्र की सुरक्षा का मार्ग बताया है। उन्होंने भाजपा पर तंज कसते हुए पूछा कि भाजपा इतना परेशान क्यों है?
उन्होंने दावा किया कि यात्रा के दौरान दरभंगा में भाजपा ने साजिश के तहत बदनाम करने की कोशिश की। पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक बातें कही गईं।
उन्होंने कहा कि बिहार में वोटर अधिकार यात्रा के साथ ऐसा तूफान आया है, जिसे पहले कभी नहीं देखा गया। यह जेपी आंदोलन से भी आगे निकल गया है।
सुप्रीम कोर्ट पर उन्होंने कहा कि हमारा संघर्ष जारी रहेगा। लेकिन हमें उम्मीद थी कि एसआईआर रद्द होनी चाहिए थी। एसआईआर एक महीने में नहीं होती। इसे लेकर रणनीति बनाई जाएगी और हमारा संघर्ष जारी रहेगा।
राहुल गांधी के हाइड्रोजन बम वाले बयान पर उन्होंने कहा कि पूरे देश में यह अभियान चलाया जाएगा। अन्य राज्यों में हाइड्रोजन बम फोड़कर खुलासा किया जाएगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो के बयान पर उन्होंने कहा कि वे ट्रंप के व्यापार सलाहकार हैं, कोई साधारण व्यक्ति नहीं। उन्होंने एक वर्ग के लिए कहा है कि रोजाना तेल खरीदने से फायदा हो रहा है जबकि देश के आम लोग परेशान हैं। मैं इसे अलग नज़रिए से देखता हूं। इस देश में कॉर्पोरेट घराने दलितों और पिछड़े समुदायों के हाथों में नहीं हैं, और शायद आने वाले दशकों तक भी नहीं होंगे।