क्या मां बागमप्रियल मंदिर में भगवान विष्णु को मिला था महादेव के श्राप से मुक्ति?
सारांश
Key Takeaways
- माँ बागमप्रियल मंदिर कैंसर से मुक्ति पाने का प्रमुख स्थल है।
- यहाँ भगवान शिव और माँ बागम प्रियल की पूजा होती है।
- मंदिर की स्थापना ऋषि अगस्त्य ने की थी।
- यह मंदिर 1000 साल से अधिक पुराना है।
- भक्तों का विश्वास है कि माँ बागम प्रियल हर रोग से मुक्ति देती हैं।
नई दिल्ली, 2 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में कई चमत्कारी मंदिर हैं, जहां भक्त अपनी बीमारियों के इलाज के लिए भगवान की शरण में आते हैं। भक्तों का विश्वास है कि भगवान उन्हें हर स्थिति से सुरक्षित रखेंगे।
तमिलनाडु में भी भगवान शिव और माँ अंबिका, जिन्हें माँ बागम प्रियल के नाम से जाना जाता है, का मंदिर स्थित है। इस मंदिर की मान्यता इतनी प्रबल है कि लोग कैंसर जैसे गंभीर रोग के उपचार के लिए दूर-दूर से यहाँ आते हैं। उनका मानना है कि माँ बागम प्रियल उन्हें हर प्रकार के रोग से मुक्त करेंगी।
तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले के तिरुवदनई के पास समुद्र किनारे स्थित तिरुवेत्तियुर गाँव में माँ बागम प्रियल का मंदिर है। माँ बागम प्रियल को 'दाई अम्मा' कहा जाता है और इन्हें असाध्य रोगों से मुक्ति देने वाली देवी माना जाता है। इस कारण भक्त यहाँ कैंसर से मुक्ति पाने के लिए आते हैं। माँ बागम प्रियल देवी अंबिका का स्वरूप हैं, जो मंदिर में भगवान शिव के साथ विराजमान हैं।
मंदिर से जुड़ी एक प्रसिद्ध किंवदंती है, जो राजा महाबली से संबंधित है। राजा महाबली, जो साहसी और दानशील थे, अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे, किंतु उनके अहंकार ने उन्हें संकट में डाल दिया। राजा महाबली ने भगवान शिव के मंदिर में जल रही ज्योत की रक्षा की थी, जिससे उन्हें शिव प्रिय माना जाता था। उनके बढ़ते अहंकार को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर उन्हें पाताल लोक भेज दिया।
राजा महाबली की माता ने भगवान शिव के पास जाकर प्रार्थना की कि उनके साथ अन्याय हुआ है। क्रोधित होकर भगवान शिव ने भगवान विष्णु को कर्क रोग का श्राप दे दिया। भगवान विष्णु ने भगवान शिव की शरण ली और उन्हें बताया गया कि 18 तीर्थ स्थलों में स्नान करना होगा।
भगवान विष्णु ने 18 पवित्र नदियों में स्नान किया और अंततः तिरुवेत्तियुर गाँव पहुंचे, जहाँ उन्हें कर्क रोग से मुक्ति मिली। इस पौराणिक कथा के कारण भक्त आज भी इस मंदिर में कैंसर से छुटकारा पाने के लिए आते हैं।
मंदिर की आयु 1000 वर्षों से अधिक है और यहाँ मुख्य रूप से माँ बागम प्रियल की पूजा की जाती है। इन्हीं की कृपा से भगवान विष्णु अपने रोग से मुक्त हुए थे। मंदिर में भगवान शिव को पझम पुत्रु नाथर के रूप में पूजा जाता है, जबकि उनकी पत्नी के रूप में माँ बागम प्रियल विराजमान हैं। यह भी माना जाता है कि मंदिर की स्थापना ऋषि अगस्त्य ने की थी, जिन्होंने पहले माँ बागम प्रियल की तपस्या की और फिर मंदिर का निर्माण कराया।