क्या मधेपुरा में जातीय समीकरण बनाम विकास की रोमांचक जंग देखने को मिलेगी?

सारांश
Key Takeaways
- मधेपुरा विधानसभा क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है।
- जातीय समीकरण और विकास के मुद्दे 2025 के चुनाव में महत्वपूर्ण होंगे।
- राजद की मजबूत स्थिति और चुनौतियों का सामना करना होगा।
- कोसी क्षेत्र की बाढ़ और कृषि सुधार पर ध्यान देना आवश्यक है।
- युवाओं का भविष्य भी इस चुनाव में महत्वपूर्ण मुद्दा है।
पटना, 7 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के कोसी क्षेत्र में स्थित मधेपुरा विधानसभा सीट 2025 के चुनावी खेल के लिए पूरी तरह तैयार है। यह विधानसभा सीट न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के कारण भी राज्य की पहचान का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। मधेपुरा, जो पहले सहरसा का अनुमंडल हुआ करता था, 1981 में जिला बना।
यह क्षेत्र कोसी नदी की गोद में बसा है, जो उपजाऊ भूमि प्रदान करती है, लेकिन विनाशकारी बाढ़ भी लाती है। कृषि पर आधारित इस जिले को प्राकृतिक आपदाओं से निरंतर जूझना पड़ता है।
मधेपुरा का सांस्कृतिक इतिहास उतना ही समृद्ध है, जितना इसका राजनीतिक अतीत। सिंहेश्वर स्थान में स्थित शिव मंदिर, ऋषि श्रृंग की कथाओं से जुड़ा है, जहां हर साल महाशिवरात्रि पर लाखों श्रद्धालु आते हैं। बाबा विशु राउत पचरासी धाम सिर्फ लोक आस्था का प्रतीक नहीं बल्कि क्षेत्रीय पहचान का भी केंद्र बन चुका है। यहां हर साल विशाल मेला लगता है, जिसका उद्घाटन खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कर चुके हैं।
राजनीतिक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र 'यादव राजनीति' का गढ़ माना जाता है। 1957 से अब तक के 17 विधानसभा चुनावों में केवल यादव समुदाय के उम्मीदवारों ने ही जीत हासिल की है। इसी तरह लोकसभा चुनावों में भी यही ट्रेंड दिखाई दिया है। यहां के यादव मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, जिनकी संख्या क्षेत्र की कुल जनसंख्या में सबसे अधिक है।
2024 के आंकड़ों के अनुसार, इस विधानसभा क्षेत्र की अनुमानित जनसंख्या 5,74,358 है, जिनमें 3,51,561 मतदाता हैं। इसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,82,255, महिलाओं की संख्या 1,69,289 और 17 थर्ड जेंडर हैं।
मधेपुरा की राजनीति में लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और पप्पू यादव का नाम हमेशा चर्चा में रहा है। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से किसी का मूल संबंध मधेपुरा से नहीं रहा, फिर भी इनका राजनीतिक जीवन इस जिले से जुड़ा रहा। लालू प्रसाद यादव ने ही शरद यादव को मधेपुरा की राजनीति में लाया था, लेकिन बाद में दोनों के बीच तल्खी इतनी बढ़ी कि 1999 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव ने लालू को हराकर सियासी तूफान ला दिया। पप्पू यादव, जिनकी छवि एक समय बाहुबली नेता की रही, उन्होंने भी यहां अपनी राजनीतिक जमीन बनाई, लेकिन यादव वोटों का स्पष्ट ध्रुवीकरण कभी किसी एक नेता को स्थायी जनाधार नहीं दे सका।
वर्तमान में यह सीट राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पास है और चंद्रशेखर यादव ने लगातार तीन बार 2015, 2020 और 2021 के उपचुनाव में जीत हासिल की है। राजद की मजबूती का एक बड़ा कारण मधेपुरा में एल्पस्टॉम लोकोमोटिव फैक्ट्री का आना भी है, जिसे लालू यादव ने 2007 में प्रस्तावित किया था। हालांकि, इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में किया, लेकिन राजद ने इसका श्रेय बखूबी लिया और चुनावी लाभ भी उठाया।
2025 का चुनाव बेहद दिलचस्प होगा, क्योंकि राजद के सामने कई चुनौतियां हैं। एक ओर पप्पू यादव की सक्रियता से यादव वोटों में सेंधमारी का खतरा है, तो दूसरी ओर जेडीयू और भाजपा मिलकर किसी स्थानीय और प्रभावी यादव चेहरे को उतारते हैं, तो मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है। हालांकि, भाजपा को इस सीट पर आज तक कोई सफलता नहीं मिली है और उसकी राजनीतिक मौजूदगी यहां बेहद सीमित रही है।
चुनाव के मुख्य मुद्दों में बेरोजगारी, कोसी की बाढ़, कृषि सुधार, इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और युवाओं का भविष्य सबसे प्रमुख हैं। जनता अब जातीय राजनीति से थोड़ा आगे बढ़कर विकास को महत्व देने लगी है, लेकिन जातीय समीकरण अब भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।