क्या मधुबन में भाजपा और राजद के बीच सीधा मुकाबला है, राणा रंधीर के सामने हैट्रिक की चुनौती?
सारांश
Key Takeaways
- मधुबन सीट का राजनीतिक इतिहास काफी गहरा है।
- भाजपा ने लगातार दो कार्यकालों में जीत हासिल की है।
- कृषक, यादव, ब्राह्मण और अल्पसंख्यक मतदाता इस बार के चुनाव में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
- राणा रंधीर के लिए हैट्रिक की चुनौती है।
पटना, 27 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार की मधुबन विधानसभा क्षेत्र राज्य के 243 विधानसभा क्षेत्रों में से एक है और पूर्वी चंपारण जिले की एक महत्वपूर्ण राजनीतिक सीट मानी जाती है। यह सीट शिवहर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और एक सामान्य वर्ग की सीट है। 1957 में अस्तित्व में आने के बाद से यह सीट बिहार में कई महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तनों की साक्षी रही है।
मधुबन क्षेत्र बिहार के मध्य गंगा मैदान का हिस्सा है, जो अपनी उपजाऊ भूमि और कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था के लिए जाना जाता है। यहां धान, गेहूं और मक्का जैसी फसलें प्रमुख रूप से उगाई जाती हैं।
इस क्षेत्र में आम के बागान और नहरों का जाल ग्रामीण जीवनशैली को परिभाषित करता है। मानसून के दौरान कुछ स्थानों पर जलजमाव की समस्या होती है, लेकिन क्षेत्र से कोई प्रमुख नदी नहीं गुजरती।
मधुबन के मंदिर, दरगाहें और साप्ताहिक हाट (बाजार) यहां की सामाजिक-सांस्कृतिक एकता के प्रतीक हैं। ये स्थल न सिर्फ धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र हैं, बल्कि स्थानीय राजनीतिक चर्चाओं के भी अहम मंच बन चुके हैं।
अगर राजनीतिक इतिहास को देखा जाए तो मधुबन विधानसभा सीट का गठन 1957 में हुआ था और तब से लेकर अब तक यहां 16 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। शुरुआती वर्षों में यहां कांग्रेस और वामपंथी दलों का दबदबा रहा। 1957 में यहां से एक निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए थे, जबकि 1962 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की। इसके बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने लगातार तीन बार जीतकर क्षेत्र में अपनी गहरी पैठ बनाई।
1977 और 1980 में कांग्रेस ने वापसी की, जबकि 1985 में जनता पार्टी के नेता सीताराम सिंह के रूप में इस सीट ने एक स्थायी राजनीतिक पहचान हासिल की। सीताराम सिंह ने 1990 और 1995 में जनता दल के टिकट और 2000 में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की। वे बिहार सरकार में मंत्री भी रहे और क्षेत्र के विकास कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई।
2005 के बाद मधुबन सीट का राजनीतिक रुख बदला और यह एनडीए गठबंधन का गढ़ बन गई। 2005 और 2010 में जदयू ने यहां जीत दर्ज की, जबकि 2015 और 2020 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने यह सीट अपने नाम की। लगातार दो कार्यकालों में जीत के साथ भाजपा ने यहां मजबूत पकड़ बनाई है।
इस बार मधुबन विधानसभा सीट से 8 उम्मीदवार मैदान में हैं। भाजपा ने मौजूदा विधायक राणा रंधीर पर भरोसा जताया है, जबकि राजद ने संध्या रानी को टिकट दिया है। जन सुराज ने शिव शंकर राय को प्रत्याशी बनाया है।
मधुबन सीट पर कृषक, यादव, ब्राह्मण और अल्पसंख्यक मतदाता संख्या में अधिक हैं, जो इस बार के चुनाव में परिणाम तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।