क्या मधुश्रावणी में पति की लंबी उम्र के लिए मिथिलांचल की नवविवाहिताएं महादेव का पूजन करती हैं?

सारांश
Key Takeaways
- मधुश्रावणी व्रत नवविवाहिताओं के लिए पति की लंबी उम्र की कामना का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।
- इस व्रत का उद्देश्य पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा देना भी है।
- महिला पुरोहित इस पूजा का संचालन करती हैं, जो इस परंपरा को विशेष बनाता है।
- नवविवाहिताएं इस दौरान अपने वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि की कामना करती हैं।
- यह पर्व बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र की एक अद्वितीय सांस्कृतिक परंपरा है।
नई दिल्ली, 15 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। महादेव की कृपा पाने का सबसे विशेष महीना श्रावण है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह महीना भोलेनाथ को अत्यधिक प्रिय है। इस महीने में महादेव का जलाभिषेक या सोमवार का व्रत, इसे बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस सावन में महादेव की कृपा प्राप्त करने के लिए शिवालयों में भक्तों की भीड़ लगी रहती है, और तपस्वी तथा साधु इस पूरे महीने पवित्र नदियों के किनारे रहते हैं और हठयोग करते हैं। इस सबके बीच, बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में नवविवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए मधुश्रावणी का व्रत रखती हैं।
मिथिलांचल में ब्राह्मण, कर्ण कायस्थ और स्वर्णकार इस त्योहार को मनाते हैं। जिन परिवारों में कन्या का विवाह होता है, वे नवविवाहिताएं इस व्रत को श्रावण के महीने में 14-15 दिनों तक महादेव की पूजा विधिपूर्वक करती हैं।
इस 14-15 दिनों के अनुष्ठान में, नवविवाहिताओं को अंतिम दिन 'टेमी' दिया जाता है। इसमें उनके घुटनों को अग्नि के संपर्क में लाया जाता है, जो एक प्रकार की अग्नि परीक्षा होती है। मान्यता है कि घुटने पर जितना बड़ा घाव होगा, पति की उम्र उतनी ही लंबी होगी। हालांकि, अब 'शीतल टेमी' का प्रचलन बढ़ गया है, जिसमें यह अनुष्ठान बिना आग के किया जाता है।
मधुश्रावणी का आरंभ प्राचीन काल में नवविवाहिताओं को उनके वैवाहिक जीवन में सरलता लाने के लिए किया गया। महिलाएं दुल्हन के कपड़े पहनती हैं और मौसमी फूलों एवं पेड़ों के पत्तों को इकट्ठा करती हैं। वे प्रतिदिन भगवान शिव और माता गौरी की पूजा करती हैं। यह पूजा महिला पुरोहित करवाती हैं और नवविवाहिताओं को कथा भी सुनाती हैं।
इस दौरान नवविवाहिताओं को नाग देवताओं, गौरी, सूर्य, चंद्रमा और नवग्रह की भी पूजा करनी होती है। इस त्योहार का उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाना भी है। संस्कृति को बनाए रखने के लिए, जूही और मैनी जैसे पौधों का उपयोग अनुष्ठानों में किया जाता है।
इस पर्व की एक विशेषता यह है कि किसी भी देवी-देवता को बासी फूल नहीं चढ़ाए जाते, जबकि इस पर्व के दौरान मनसा देवी को बासी फूल चढ़ाए जाते हैं। सावन मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से यह त्योहार प्रारंभ होता है और शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को समाप्त होता है।
नवविवाहिताएं इस दौरान अपना श्रृंगार, जैसे बाल, पहले दिन बांधती हैं और अंतिम दिनों तक वही बांधे रखती हैं। वे एक बार बिना नमक का खाना खाती हैं और जमीन पर सोती हैं। इसके अलावा, वे सुबह और शाम को नियमित रूप से शिव और माता गौरी की पूजा करती हैं। इस पूजा में कच्ची मिट्टी के हाथी, नाग-नागिन, शिव-गौरी आदि की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है और यहीं इसका पूजन किया जाता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पूजा की शुरुआत से अंत तक नवविवाहिताओं के ससुराल से आई सामग्री से ही पूजा होती है। पूजा के हर दिन समाप्त होने पर सुहागिन महिलाओं को सुहाग की सामग्री नवविवाहिताओं द्वारा बांटी जाती है, जिसमें कच्ची पिसी मेहंदी का विशेष महत्व है।
महादेव की उपासना के इस पावन महीने में, नवविवाहिताएं माता गौरी और नागवंश या विषहरी नागिन से अपने पति की लंबी उम्र का आशीर्वाद मांगती हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने सर्वप्रथम मधुश्रावणी का व्रत किया था, जिसके कारण वे जन्म-जन्मांतर तक भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करती रहीं।