क्या शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की विरासत में मानवता का संदेश है?

सारांश
Key Takeaways
- महाराजा रणजीत सिंह का जीवन एक प्रेरणा है।
- उन्होंने सभी धर्मों के बीच समानता को बढ़ावा दिया।
- उनकी मोहब्बत की कहानी ने दिल को छू लिया।
- शिक्षा और संस्कृति के लिए उनका योगदान महत्वपूर्ण है।
- कोहिनूर हीरा उनकी विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
नई दिल्ली, 26 जून (राष्ट्र प्रेस)। जब हम 27 जून के इतिहास को देखते हैं, तो शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की अद्वितीय गौरवगाथा एक प्रेरणा के रूप में सामने आती है। वह धर्मनिरपेक्षता, साहस, कला और इंसानियत के प्रतीक थे। उनकी जिंदगी में जितनी तलवार की चमक थी, उतनी ही मोहब्बत की गर्माहट भी।
रणजीत सिंह का जन्म 2 नवंबर 1780 को हुआ। हालांकि, बचपन में ही चेचक से एक आंख की रोशनी खो दी, लेकिन उनके इरादे इतने मजबूत थे कि पूरी दुनिया उनके सामने धुंधली हो गई। 10 वर्ष की आयु में, जब बच्चे कंचे खेलते हैं, रणजीत सिंह ने अपने पिता के साथ पहली लड़ाई लड़ी और 17 की उम्र में अफगानों के राजा ज़मान शाह दुर्रानी को पराजित किया।
महज 12 साल की उम्र में पिता का साया उठ गया, फिर भी रणजीत सिंह ने राजपाट संभालने में कोई कमी नहीं की। 20 वर्ष की आयु में, 12 अप्रैल 1801 को, उन्हें अमृतसर में पंजाब का महाराजा घोषित किया गया। गुरु नानक के वंशज ने उन्हें ताज पहनाया, और यह क्षण पंजाब के इतिहास में अमिट हो गया।
महाराजा रणजीत सिंह का शासन एक ऐसा युग था जहां किसी को धर्म के आधार पर ऊंचा या नीचा नहीं माना गया। मुस्लिम, हिन्दू, सिख और ईसाई सभी को समान अधिकार मिले। उनकी सेना में फ्रांसीसी अधिकारी थे, लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य से सतर्कता बरती गई। रणजीत सिंह का शासन शिक्षा और संस्कृति का भी एक युग था। गांव-गांव में स्कूल खोले गए, महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा मिला और सिख कला का पुनर्जागरण हुआ। प्रमुख गुरुद्वारों का पुनर्निर्माण भी उनके काल में हुआ।
रणजीत सिंह के जीवन का एक कम चर्चित लेकिन दिल को छू लेने वाला पहलू उनकी मोहब्बत की कहानी है। अमृतसर की एक मुस्लिम नर्तकी गुल बहार ने उन्हें दीवाना बना दिया। जब रणजीत सिंह ने गुल बहार को प्रेमिका बनने का प्रस्ताव दिया, तो उसने शादी की शर्त रखी। यह उस समय असामान्य था, लेकिन रणजीत सिंह ने इसे स्वीकार किया। गुल बहार के परिवार ने कहा कि अगर शादी करनी है, तो पैदल चलकर रिश्ता मांगो। कहा जाता है कि रणजीत सिंह ने इस शर्त को भी स्वीकार किया। हालांकि, जब मामला अकाल तख्त तक पहुंचा, तो धर्माचार्य भड़क उठे। किसी अन्य धर्म की लड़की से शादी करना उस समय सिख अनुशासन का उल्लंघन माना गया, और उन्हें गुरुद्वारे की फर्श धोने की सजा दी गई। कई इतिहासकारों का मानना है कि उन्हें कोड़े भी खाने पड़े।
इतिहासकार इक़बाल कैसर लिखते हैं कि रणजीत सिंह ने गुल बहार से निकाह करने के लिए रस्सी के कोड़े खाने की सजा भी मुस्कुराते हुए स्वीकार की। यह मोहब्बत का किस्सा साबित करता है कि वे न सिर्फ युद्ध के मैदान के राजा थे, बल्कि जज़्बात के भी बादशाह थे।
रणजीत सिंह की विरासत में एक और चमकदार किस्सा जुड़ा, कोहिनूर। यह हीरा उन्हें अफगान शासक शुजा शाह दुर्रानी से प्राप्त हुआ था, जिसे उन्होंने ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर में समर्पित कर दिया। जहां अन्य सम्राट उसे अपने ताज में जड़ते, रणजीत सिंह ने इसे एक आस्था के प्रतीक के रूप में चढ़ा दिया।