क्या एसआईआर प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग खुद भ्रमित है?: सपा सांसद रामगोपाल यादव
सारांश
Key Takeaways
- एसआईआर प्रक्रिया में मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण होता है।
- 50 प्रतिशत मतदाता प्रभावित हो सकते हैं।
- चुनाव आयोग के निर्णयों का लोकतंत्र पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
- समाजवादी पार्टी ने इस मुद्दे को उठाया है।
- अधिक जानकारी और सुधार की आवश्यकता है।
दिल्ली: समाजवादी पार्टी के सांसद रामगोपाल यादव ने उत्तर प्रदेश सहित 12 राज्यों में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को गलत ठहराया है। उन्होंने प्रश्न उठाया कि जिस प्रकार से एसआईआर प्रक्रिया चल रही है, उससे मतदाता सूची में केवल 50 प्रतिशत लोगों के वोट ही बच सकेंगे।
रामगोपाल यादव ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा, "चुनाव आयोग एसआईआर को लेकर खुद ही भ्रमित है। बड़े पैमाने पर बीएलओ ने लोगों को अनुपस्थित, स्थायी रूप से विस्थापित और मृत दिखाया, लेकिन हो सकता है कि उनमें से भी कुछ जीवित निकल आएं।"
फिरोजाबाद के टूंडला विधानसभा क्षेत्र का उदाहरण देते हुए सपा सांसद ने कहा, "फिरोजाबाद के टूंडला विधानसभा क्षेत्र में 3,82,160 मतदाता हैं। मंगलवार तक एसआईआर प्रक्रिया के दौरान दिखाया गया है कि 3,82,159 फॉर्म बांटे गए।
इनमें से 10,703 मतदाताओं को मृत, 11,964 को अनुपस्थित और 29,364 को स्थायी रूप से दूसरी जगह शिफ्ट दिखाया गया। सवाल यह है कि जब इतने सारे लोग मृत, अनुपस्थित और शिफ्ट हो चुके हैं, तब 100 प्रतिशत फॉर्म वितरण कैसे हुआ?"
रामगोपाल यादव ने आगे कहा, "इसमें सबसे खतरनाक स्थिति यह है कि 2003 का मतदाता जो 2025 में भी मतदाता है, उसे चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार किसी दस्तावेज की आवश्यकता नहीं है। उसे केवल एक फॉर्म भरना है और वह फिर से मतदाता बन जाता है। एक ओर इलेक्शन कमीशन कहता है कि किसी दस्तावेज की आवश्यकता नहीं है, दूसरी ओर अधिकारियों, स्टाफ और कलेक्टरों के अतिरिक्त काम से बचने के लिए सभी को कैटेगरी 'सी' में डाल दिया गया है।"
उन्होंने कहा, "यदि इन्हें वोट काटना है तो कैटेगरी 'सी' में दिखाकर नोटिस भेजा जाता है, लेकिन अगर किसी मतदाता को वह नोटिस नहीं मिला तो वोट कट जाएगा। क्योंकि एसडीएम कहेगा कि उन्होंने नोटिस भेजा, लेकिन मतदाता तक नहीं पहुंचा तो वह जवाब नहीं दे पाएगा। इस स्थिति में उसका वोट कटेगा।"
समाजवादी पार्टी के सांसद ने दावा किया कि इस एसआईआर से 50 प्रतिशत लोगों के वोट कट जाएंगे, लेकिन सरकार और चुनाव आयोग इसे समझ नहीं पा रहे हैं।