क्या नागपुर के सीनियर भोंसला पैलेस में महालक्ष्मी उत्सव का जादू फिर से छा गया?

सारांश
Key Takeaways
- महालक्ष्मी पूजा का आयोजन 297 वर्षों से हो रहा है।
- गणपति की 314 वर्ष पुरानी प्रतिमा है।
- उत्सव का आयोजन सीनियर भोंसला पैलेस में होता है।
- यह समारोह धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।
- विदर्भ क्षेत्र की पहचान को जीवित रखता है।
नागपुर, 1 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। नागपुर के सीनियर भोंसला पैलेस में एक बार फिर परंपरा और आस्था का अनूठा संगम देखने को मिला, जहाँ राजे मुधोजी महाराज भोसले के ऐतिहासिक महल में 297वें वर्ष में महालक्ष्मी का आगमन हुआ। यह परंपरा सन 1728 से अनवरत जारी है और नागपुर के लोगों के लिए यह न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखने का प्रतीक भी है।
यह आयोजन विदर्भ क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को जीवंत बनाए रखता है। विदर्भ में गौरी-गौराईं को महालक्ष्मी के स्वरूप में पूजा जाता है। भोसले घराने द्वारा शुरू की गई इस परंपरा के तहत सीनियर भोंसला पैलेस में महालक्ष्मी की स्थापना बड़े विधि-विधान के साथ की गई। महालक्ष्मी की प्रतिमा को परंपरागत आभूषणों और गाढ़ी चांदी के आभरणों से सजाया गया, जिसमें फराल और फूलों की सजावट विशेष आकर्षण रही। यह सजावट भोसले घराने की समृद्ध परंपरा को दर्शाती है।
महल में आयोजित धार्मिक अनुष्ठानों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी, जो इस उत्सव के प्रति उनकी गहरी आस्था को दर्शाता है।
इस आयोजन का एक और अनूठा आकर्षण है गणपति की 314 वर्ष पुरानी प्रतिमा। यह प्रतिमा एक ही आकार और रंग में हर वर्ष स्थापित की जाती है। इसकी खासियत है भोसले कालीन पगड़ी, जो भोसले वंश की शान और गौरव को जीवंत रखती है।
राजे मुधोजी महाराज भोसले ने इस अवसर पर कहा, "महालक्ष्मी की स्थापना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह परिवार और समाज को जोड़ने का माध्यम है। यह परंपरा नई पीढ़ी को हमारी संस्कृति और मूल्यों से जोड़ने का संदेश देती है। यह आयोजन सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का एक सशक्त माध्यम है।"
उन्होंने आगे कहा कि नागपुर और विदर्भ में महालक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व है। हर घर में गौरी-गौराईं के रूप में महालक्ष्मी का स्वागत किया जाता है, लेकिन सीनियर भोसला पैलेस की यह पूजा अपनी ऐतिहासिक और राजसी गरिमा के कारण विशिष्ट मानी जाती है।
सीनियर भोंसला पैलेस की महालक्ष्मी पूजा धार्मिक आस्था, ऐतिहासिक धरोहर और सांस्कृतिक परंपरा का सुंदर संगम है। 297 वर्षों से चली आ रही यह परंपरा न केवल नागपुर की शान है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी। यह उत्सव विदर्भ की सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखने का एक जीता-जागता उदाहरण है।