क्या महाराष्ट्र में महिलाओं के खिलाफ बलात्कार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं? : अनिल देशमुख

सारांश
Key Takeaways
- महिलाओं के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं चिंताजनक हैं।
- शक्ति कानून का कार्यान्वयन आवश्यक है।
- राज्य सरकार को महिलाओं की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए।
- हिंदी की अनिवार्यता का विरोध हो रहा है।
- अशोक चक्र को फिर से शामिल करना चाहिए।
मुंबई, 30 जून (राष्ट्र प्रेस)। महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के प्रमुख नेता अनिल देशमुख ने राज्य सरकार पर महिलाओं के प्रति बढ़ते अत्याचारों का आरोप लगाया।
देशमुख ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि महा विकास आघाड़ी सरकार के तहत महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार और बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए 'शक्ति' कानून का निर्माण किया गया था। इस कानून को पांच साल पहले विधानसभा और विधान परिषद में स्वीकृति मिली थी, लेकिन केंद्र सरकार ने इसे अंतिम रूप से मंजूरी नहीं दी।
उन्होंने बताया कि एक वर्ष पूर्व केंद्र ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में संशोधन के बाद नए भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत शक्ति कानून के कार्यान्वयन के लिए एक समिति गठित करने का सुझाव दिया था। हालाँकि, एक वर्ष बीत जाने के बावजूद राज्य सरकार ने इस समिति का गठन नहीं किया। महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों को रोकने में सरकार की उदासीनता स्पष्ट है। 'शक्ति' कानून के लागू होने पर बलात्कार जैसे अपराधों में दोषियों को फांसी की सजा का प्रावधान होगा, जिससे अपराधियों में भय उत्पन्न होगा और ऐसी घटनाओं में कमी आ सकती है।
एनसीपी (एसपी) नेता ने प्राथमिक स्कूलों में हिंदी भाषा की अनिवार्यता के खिलाफ भी अपनी आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि हाल ही में राज्य सरकार ने प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने का एक जीआर (शासकीय आदेश) जारी किया था, जिसका पूरे महाराष्ट्र में विरोध हुआ। उद्धव ठाकरे की शिवसेना, राज ठाकरे की मनसे, शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस जैसे सभी प्रमुख दलों ने इसका विरोध किया। सरकार ने 5 जुलाई को प्रस्तावित एक विशाल रैली के डर से यह जीआर रद्द कर दिया। हिंदी के प्रति किसी को आपत्ति नहीं है, लेकिन प्राथमिक स्तर पर मराठी भाषा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
देशमुख ने विधान भवन के प्रवेश पत्र से अशोक चक्र के प्रतीक को हटाने पर भी नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने कहा, "मैं 25-30 वर्ष से विधानसभा का सदस्य हूं। प्रवेश पत्र पर हमेशा अशोक चक्र का चिह्नित रहता था, लेकिन इस बार इसे हटा दिया गया। यह समझ से परे है कि सरकार ने ऐसा क्यों किया। कुछ लोग संविधान को बदलने की मंशा का आरोप लगाते हैं, और ऐसी घटनाएं इस आशंका को बल देती हैं। सरकार को अशोक चक्र को प्रवेश पत्र पर पुनः शामिल करना चाहिए। कई वर्षों से अशोक स्तंभ विजिटिंग पास के ऊपर लगा रहता था, उसे कायम रखना चाहिए।