क्या मनरेगा का नाम बदलना गरीबों के रोजगार को छीनने की कोशिश है?
सारांश
Key Takeaways
- मनरेगा का नाम बदलना: गरीबों के लिए जोखिम भरा कदम।
- हरसिमरत कौर: मजदूरों के अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता।
- वायु प्रदूषण: सरकार की जिम्मेदारी पर सवाल।
नई दिल्ली, 18 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। मनरेगा का नाम बदलकर 'विकसित भारत- जी राम जी' करने के निर्णय पर विपक्ष सरकार पर लगातार हमलावर है, इसे मज़दूरों के साथ धोखा बताया जा रहा है। इस संदर्भ में शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि यह कदम स्पष्ट रूप से गरीबों और मजदूरों के खिलाफ है।
उन्होंने कहा कि मनरेगा गरीबों, बुजुर्गों, दिव्यांगों और बेसहारा लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण योजना थी। खासकर महिलाओं के लिए यह एक आवश्यक साधन था, जिससे वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकती थीं और सम्मानपूर्वक जीवन जी सकती थीं।
हरसिमरत ने आगे कहा कि अब नाम बदलने और नई जटिल शर्तें लगाने के कारण यह रोजगार भी गरीबों से छीन लिया गया है। जिन राज्यों पर 40 प्रतिशत का अतिरिक्त बोझ डाला गया है, वहां के गरीब परिवारों की स्थिति और भी कठिन होगी। उन्होंने इसे सीधे तौर पर मज़दूरों के साथ धोखा और काला कानून करार दिया। उनका कहना है कि जहां पहले पैसा कुशलता से खर्च होता था, अब वही राज्यों पर बोझ बन गया है।
इसके साथ ही, हरसिमरत कौर बादल ने वायु प्रदूषण पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि दिल्ली में पिछले कई वर्षों से सरकारें अपने कार्यों में ढिलाई बरत रही हैं। चाहे वह केजरीवाल की आम आदमी पार्टी हो या मौजूदा सरकार, दोनों ही अपनी जिम्मेदारियों से बचते रहे हैं और पंजाब के किसानों पर सभी दोष डाल दिए जाते हैं। असलियत यह है कि ये किसान मजबूरी में फसल जलाते हैं, क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प नहीं होता। अगर वे ऐसा नहीं करेंगे, तो अगली फसल कैसे उगाएंगे और अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करेंगे?
कांग्रेस सांसद तारिक अनवर ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई। उनका कहना है कि यह सिर्फ भारत का नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का मुद्दा बन गया है। आज भारत के सभी बड़े शहरों में प्रदूषण है और सरकार ने कभी इसे नियंत्रित करने की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई। जब प्रदूषण बढ़ जाता है, तभी लोगों की आंखें खुलती हैं। इसके परिणामस्वरूप बच्चों की सेहत प्रभावित हो रही है, बुजुर्गों को सांस लेने में कठिनाई हो रही है और दिल्ली में लोगों की औसत उम्र तक घट रही है।