क्या मौलाना अरशद मदनी ने 'वंदे मातरम' पर कुछ बड़ा कहा?

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क्या मौलाना अरशद मदनी ने 'वंदे मातरम' पर कुछ बड़ा कहा?

सारांश

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने 'वंदे मातरम' पर एक महत्वपूर्ण बयान दिया है, जिसमें उन्होंने मुसलमानों की धार्मिक आस्था और संविधान के अधिकारों के बारे में चर्चा की। इस बयान ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में नई बहस को जन्म दिया है।

Key Takeaways

  • 'वंदे मातरम' को लेकर मौलाना मदनी का स्पष्ट दृष्टिकोण है।
  • उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की बात की।
  • यह बयान राजनीतिक और सामाजिक हलकों में नई बहस को जन्म दे रहा है।

नई दिल्ली, 9 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। 'वंदे मातरम' के संदर्भ में चल रही राष्ट्रीय चर्चा के बीच, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मुसलमानों को 'वंदे मातरम' पढ़ने या गाने से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इसे धार्मिक रूप से मानने या गाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसका अर्थ इस्लाम की आस्था के खिलाफ है।

मौलाना मदनी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखा, "हमें किसी के 'वंदे मातरम' पढ़ने या गाने पर आपत्ति नहीं है, लेकिन मुसलमान केवल एक अल्लाह की इबादत करता है और अपनी इबादत में अल्लाह के सिवा किसी दूसरे को शामिल नहीं कर सकता। 'वंदे मातरम' का अनुवाद शिर्क से संबंधित मान्यताओं पर आधारित है, इसके चार श्लोकों में देश को देवता मानकर 'दुर्गा माता' से तुलना की गई है और पूजा के शब्दों का प्रयोग हुआ है। साथ ही 'मां, मैं तेरी पूजा करता हूं' यही 'वंदे मातरम' का अर्थ है। यह किसी भी मुसलमान की धार्मिक आस्था के खिलाफ है। इसलिए किसी को उसकी आस्था के खिलाफ कोई नारा या गीत गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता क्योंकि भारत का संविधान हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) देता है।"

उन्होंने 'एक्स' पोस्ट में आगे लिखा, "वतन से प्रेम करना अलग बात है, उसकी पूजा करना अलग बात है। मुसलमानों की देशभक्ति के लिए किसी के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है। स्वतंत्रता संग्राम में उनकी कुर्बानियां इतिहास के सुनहरे पन्नो में दर्ज हैं।"

मदनी ने 'एक्स' पोस्ट के अंत में लिखा, "हम एक खुदा (अल्लाह) को मानने वाले हैं, अल्लाह के सिवा न किसी को पूजनीय मानते हैं और न किसी के आगे सजदा करते हैं। हमें मर जाना स्वीकार है, लेकिन शिर्क (खुदा के साथ किसी को शामिल करना) कभी स्वीकार नहीं।"

मौलाना मदनी के इस बयान के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में नई चर्चा शुरू हो गई है। 'वंदे मातरम' के 150 साल पूरे होने के मौके पर संसद में होने वाली विशेष चर्चा के समय आया यह बयान बहस को और गरमाने वाला माना जा रहा है।

Point of View

बल्कि भारतीय संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को भी रेखांकित किया है। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे सभी को समझना चाहिए।
NationPress
09/12/2025

Frequently Asked Questions

क्या मौलाना मदनी का बयान विवादास्पद है?
हां, यह बयान भारत के विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच बहस को जन्म दे सकता है।
'वंदे मातरम' का क्या अर्थ है?
'वंदे मातरम' का अर्थ है 'मैं तुम्हारी पूजा करता हूं', जो कुछ मुसलमानों की धार्मिक आस्था के खिलाफ है।
मौलाना मदनी ने किस प्लेटफॉर्म पर बयान दिया?
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर अपना बयान साझा किया।
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