क्या मनरेगा को बदलकर गरीबों का चूल्हा ठंडा करने की कोशिश की जा रही है? पंजाब विधानसभा में उठेगी आवाज: सीएम मान
सारांश
Key Takeaways
- मनरेगा को समाप्त करने का नया विधेयक पारित हुआ है।
- पंजाब सरकार ने विरोध का ऐलान किया है।
- विपक्ष ने आरोप लगाया है कि यह गरीबों के लिए खतरा है।
- जनवरी में विधानसभा में चर्चा होगी।
- यह विधेयक ग्रामीण रोजगार को कमजोर कर सकता है।
चंडीगढ़, १९ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। लोकसभा में बड़े हंगामे के बीच गुरुवार को 'विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन' (जी राम जी) विधेयक को पारित किया गया। यह विधेयक महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), २००५ को समाप्त कर उसकी जगह लेगा। केंद्र सरकार का दावा है कि यह नया कानून ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आजीविका को अधिक सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इस निर्णय के साथ ही संसद के भीतर और बाहर राजनीतिक विवाद छिड़ गया है।
विपक्षी सांसदों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि वह गरीबों और ग्रामीण मजदूरों के लिए आजीविका का सबसे बड़ा साधन समाप्त करने की कोशिश कर रही है। इस फैसले के विरोध में पंजाब सरकार ने सड़कों से लेकर सदन तक लड़ाई का ऐलान किया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस मुद्दे को उठाने के लिए जनवरी के दूसरे हफ्ते में पंजाब विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की जानकारी दी।
सीएम भगवंत मान ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, "केंद्र की भाजपा सरकार गरीबों और मजदूरों के रोज़ी-रोटी का साधन 'मनरेगा' स्कीम को बदलकर गरीबों के घरों का चूल्हा ठंडा करने की कोशिश कर रही है। इस अन्याय के खिलाफ पंजाबियों की आवाज उठाने के लिए जनवरी के दूसरे हफ्ते में पंजाब विधानसभा का स्पेशल सेशन बुलाया जाएगा।"
गौरतलब है कि 'विकसित भारत: जी राम जी' बिल को लेकर विपक्ष का विरोध जारी है, जिसमें कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने स्पीकर ओम बिरला से आग्रह किया था कि इस अहम विधेयक को विस्तृत जांच के लिए स्थायी समिति या संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा जाए। वेणुगोपाल ने कहा था कि यह बिल मनरेगा जैसे बड़े रोजगार कानून की जगह ले रहा है, इसलिए इसे जल्दबाजी में पारित नहीं किया जाना चाहिए।
हालांकि, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्ष की मांग को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि इस विधेयक पर पहले ही आठ घंटे से अधिक समय तक चर्चा हो चुकी है, जो बुधवार देर रात तक चली थी। ऐसे में इसे समिति को भेजने की जरूरत नहीं है।
विपक्षी दलों का आरोप है कि यह बिल मनरेगा की मांग आधारित गारंटी को कमजोर करता है, राज्यों पर वित्तीय बोझ डालता है और महात्मा गांधी का नाम हटाना राष्ट्रपिता का अपमान है।