मैसूर में चामुंडेश्वरी देवी का रथ उत्सव कैसे धूमधाम से संपन्न हुआ?

सारांश
Key Takeaways
- चामुंडेश्वरी देवी का रथ उत्सव धार्मिक आस्था का प्रतीक है।
- शाही परिवार की भागीदारी इस उत्सव को विशेष बनाती है।
- उत्सव में हजारों भक्त शामिल होते हैं।
- मंदिर की ऐतिहासिकता और मान्यताएँ महत्वपूर्ण हैं।
- यह उत्सव मैसूर की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है।
मैसूर, 6 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। मां चामुंडेश्वरी देवी के भव्य रथ उत्सव का आयोजन मैसूर में धूमधाम से हुआ। यह रथ उत्सव सुबह 9 बजकर 32 मिनट से प्रारंभ होकर 9 बजकर 42 मिनट के बीच शुभ मुहूर्त में शुरू किया गया। इस उत्सव की शुरुआत शाही परिवार की प्रमोदा देवी वोडेयार और यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वोडेयार ने की।
माता चामुंडेश्वरी की मूर्ति को सजा कर रथ में विराजित किया गया, और इसके बाद रथ को मंदिर परिसर के चारों ओर एक चक्कर लगाया गया। इस शोभा यात्रा में हजारों भक्तों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
रथ उत्सव में शाही परिवार के सदस्यों ने भी भाग लिया। प्रमोदा देवी वोडेयार, यदुवीर और उनकी पत्नी तृषिका कुमारी ने माता चामुंडेश्वरी की पूजा-अर्चना की। भक्तों ने फल और जौ (जवाना) चढ़ाकर माता का आशीर्वाद प्राप्त किया।
यह रथ उत्सव हर साल की तरह इस वर्ष भी भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाया गया, जिसमें मैसूर की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत की झलक देखने को मिली।
प्रमोदा देवी वोडेयार ने कहा, "हमने माता चामुंडेश्वरी से प्रार्थना की है कि समय पर बारिश हो, लोग सुख-शांति से रहें, और देशवासियों को किसी भी कठिनाई का सामना न करना पड़े।"
वहीं, यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वोडेयार ने कहा, "हमने माता से समय पर वर्षा, किसानों के लिए समृद्ध फसल और राज्य के लोगों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना की है।"
चामुंडेश्वरी माता का मंदिर चामुंडी पहाड़ियों की चोटी पर स्थित है और यह शक्ति की देवी दुर्गा का प्रतीक है, जिन्होंने यहीं पर महिषासुर का वध किया था। यह मंदिर मैसूर के शाही परिवार की कुलदेवी का स्थान होने के साथ-साथ कर्नाटक के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर 18 महाशक्तिपीठों में शामिल है, जहां देवी सती के बाल गिरे थे। हजारों वर्ष पुराना यह मंदिर क्रौंच पुरी या क्रौंच पीठम के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर की दीवारों पर बनी नक्काशी और बाहर विराजमान नंदी की विशाल प्रतिमा भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
यह उत्सव मैसूर की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक है, जो हर साल भक्तों को एकजुट करता है।