क्या मिशन शक्ति-5 ने नारी सुरक्षा, सम्मान और स्वावलंबन को नई ऊंचाई दी?

सारांश
Key Takeaways
- महिलाओं की उद्यमिता से समाज में सकारात्मक बदलाव संभव है।
- नीलम गुप्ता की कहानी प्रेरणा देती है कि सामाजिक जिम्मेदारी और उद्यमिता को साथ लाकर कैसे सफल हो सकते हैं।
- स्वयं सहायता समूहों का नेटवर्क महिलाओं को सशक्त बनाता है।
- सिर्फ आर्थिक विकास नहीं, सामाजिक जागरूकता भी आवश्यक है।
- परंपरागत सोच को चुनौती देकर नीलम जैसे उद्यमी नवाचार ला रहे हैं।
लखनऊ, 25 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में प्रदेश की महिलाएं मिशन शक्ति के तहत आज नारी सुरक्षा, सम्मान और स्वावलंबन की एक पहचान बनकर उभर रही हैं। इस पहल के अंतर्गत, भदोही जनपद की 33 वर्षीय नीलम गुप्ता चुपचाप एक नई क्रांति का नेतृत्व कर रही हैं।
एक स्नातक, पूर्व ग्राम प्रधान और समर्पित स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) 'प्रगति समूह' की सदस्य के रूप में, नीलम की यात्रा उन ग्रामीण महिलाओं की उम्मीदों को दर्शाती है, जो अब केवल जीविका के लिए समझौता करने को तैयार नहीं हैं।
वर्ष 2020 में, जब उनके 'प्रगति समूह' में मासिक धर्म स्वास्थ्य और आजीविका के संबंध में चर्चा हुई, तब नीलम को एक ऐसा रास्ता दिखाई दिया, जो इन दोनों समस्याओं का समाधान कर सकता था। गांव की अधिकांश महिलाओं को न तो सुलभ और किफायती सैनिटरी पैड मिलते थे और न ही वे सामाजिक कलंक के कारण उन्हें खरीदने में सहज महसूस करती थीं। इसके साथ ही, रोजगार के अवसर भी काफी सीमित थे। नीलम ने सोचा कि यदि कोई उद्यम इन दोनों समस्याओं का समाधान कर सके, तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता।
नीलम बताती हैं कि उनके लिए उद्यमिता केवल आय का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक प्रभाव का एक माध्यम है। आत्मनिर्भर क्लस्टर लेवल फेडरेशन (सीएलएफ) और स्वामी विवेकानंद शिक्षा समिति (एसवीएसएस) के सहयोग से महिलाओं द्वारा संचालित सैनिटरी नैपकिन उद्यम 'वंशिका लाइफकेयर' की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि उन्होंने दिल्ली स्थित एक निर्माता से थोक में सैनिटरी पैड मंगवाए और स्थानीय स्तर पर ब्रांडिंग और पैकेजिंग की व्यवस्था की। इस मॉडल ने लागत को कम रखा और संचालन को गांव के भीतर ही संभव बनाया।
हालांकि, किसी भी प्रथम-पीढ़ी की उद्यमी की तरह, नीलम की राह आसान नहीं रही। कच्चे माल की आपूर्ति, पैकेजिंग, और ग्राहकों का आधार बनाना हर कदम पर नई चुनौतियाँ थीं, लेकिन हर सहकर्मी प्रशिक्षण, एसएचजी बैठक और एक्सपोजर विजिट के साथ नीलम का आत्मविश्वास बढ़ता गया। 2024 तक उन्होंने बड़ौदा यूपी बैंक से 10-12 लाख रुपए का ऋण प्राप्त कर लिया था। एसवीएसएस द्वारा समर्थित वित्तीय नेटवर्किंग की मदद से अपने स्वयं के कार्यबल का निर्माण शुरू किया।
नीलम बताती हैं कि आज उनके साथ सात पूर्णकालिक कर्मचारी जुड़े हैं, जिन्हें उन्होंने रोजगार दिया है। इसके अलावा, अधिकतम मांग के समय में दस से अधिक अंशकालिक कर्मचारियों को इससे रोजगार मिलता है। उनकी टीम न केवल पैकेजिंग और वितरण का कार्य करती है, बल्कि मासिक धर्म स्वास्थ्य पर जागरूकता अभियान भी चलाती है। चार महिलाएं घर-घर जाकर उत्पाद बेचती हैं, दो पुरुष कर्मचारी दुकानों तक आपूर्ति करते हैं और एक समर्पित प्रशिक्षक आसपास के गांवों और सीएलएफ में स्वास्थ्य सत्र आयोजित करता है।
'वंशिका लाइफकेयर' अब प्रति माह 40,000 से 60,000 रुपए तक का लाभ अर्जित कर रही है और पूरे समुदाय में सकारात्मक बदलाव की लहर फैला रही है। नीलम केवल एक व्यवसाय नहीं चला रही हैं, बल्कि वे एक सामाजिक व्यवस्था को चुनौती दे रही हैं। उनका कार्य मासिक धर्म से जुड़ी वर्जनाओं को तोड़ता है, ग्रामीण महिलाओं के लिए गरिमामयी रोजगार के अवसर पैदा करता है और यह दर्शाता है कि 'गैर-पारंपरिक' उद्यम कैसा हो सकता है। वे डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स द्वारा 'उच्च-विकास वाले जमीनी स्तर की उद्यमी' के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं। एक ऐसी महिला जो समुदाय की जरूरतों और संरचनात्मक बदलाव के बीच सेतु बनाकर एक स्केलेबल एवं सामाजिक रूप से प्रासंगिक मॉडल चला रही है। उन्होंने अपने पहले ऋण का पुनर्भुगतान समय पर कर लिया है, जिससे उनका सिविल स्कोर बेहतर हुआ है और अब वे अपने एसएचजी तथा ग्राम संगठन की अन्य महिलाओं को सक्रिय रूप से मार्गदर्शन दे रही हैं।
नीलम का अगला लक्ष्य नवाचार है। वे अब उन महिलाओं के लिए पुन: प्रयोज्य सूती पैड्स की एक नई श्रंखला शुरू करने जा रही हैं, जो डिस्पोजेबल विकल्प नहीं खरीद सकतीं। इसके साथ ही, वे सरकारी स्कूलों के साथ मिलकर स्वच्छता किट वितरित करने की संभावनाएं भी तलाश रही हैं।
नीलम आज प्रदेश की उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं, जो वंचित महिलाओं को सहायता प्राप्तकर्ता से समाधान निर्माता बना रही हैं। वित्तीय पहुँच, कौशल, डिजिटल दृश्यता और बाजार संपर्क जब इन्हें सही पारिस्थितिकी तंत्र समर्थन प्राप्त हो, तो नीलम जैसी ग्रामीण महिलाएं यह सिद्ध करती हैं कि नवाचार केवल महानगरों या इनक्यूबेटरों से नहीं आता। कभी-कभी, यह एक ऐसी महिला से आता है, जिसके पास एक दृढ़ संकल्प, एसएचजी का मजबूत नेटवर्क और बदलाव का नेतृत्व करने का साहस होता है।