क्या निशिकांत दुबे ने कांग्रेस पर सीआईए-केजीबी फंडिंग का गंभीर आरोप लगाया?

सारांश
Key Takeaways
- भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाया।
- कांग्रेस ने सीआईए और केजीबी से फंडिंग ली, यह दावा किया गया।
- दुबे ने न्यायिक आयोग से जांच की मांग की।
- इस मामले का भारतीय लोकतंत्र पर गहरा असर हो सकता है।
- आरोप 1947 से 2014 के बीच के फंडिंग का है।
नई दिल्ली, 1 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कांग्रेस पार्टी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि पार्टी को कई दशकों तक अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और सोवियत संघ की केजीबी से फंडिंग मिलती रही। दुबे ने इस मुद्दे की न्यायिक जांच आयोग से जांच कराने की अपील की और इसे भारतीय लोकतंत्र और संप्रभुता पर एक गंभीर हमला बताया।
समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस के साथ एक विशेष बातचीत में, निशिकांत दुबे ने कहा कि 1947 से 2014 के बीच, कांग्रेस ने अपने शासन के दौरान विदेशी ताकतों के इशारों पर काम किया। केजीबी और सीआईए जैसे विदेशी खुफिया संगठनों से पार्टी के शीर्ष नेताओं ने फंडिंग प्राप्त की, और इन्हीं के अनुसार देश की नीतियां बनती रहीं। केवल अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार (1998-2004) को छोड़कर, यह देश हमेशा विदेशी फंडिंग और एजेंडे पर चलता रहा।
दुबे ने यह भी बताया कि हाल ही में उन्होंने दो 'एक्स' पोस्ट किए थे जिनमें कांग्रेस और उसके नेताओं की कथित विदेशी फंडिंग के बारे में जानकारी साझा की गई।
दुबे ने कहा कि इंदिरा गांधी ने शिमला समझौते के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को पत्र लिखकर अमेरिका से संबंध सुधारने का आग्रह किया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि निक्सन और उनके सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर के बीच एक वार्तालाप में लगभग 300 करोड़ रुपए की सहायता की चर्चा हुई थी।
उन्होंने आगे कहा कि 10 मई 1979 को राज्यसभा में हुई बहस में तत्कालीन गृह मंत्री चंपत पटेल ने अमेरिकी राजदूत डेनियल मोयनिहान की किताब का हवाला देते हुए स्वीकार किया कि अमेरिका ने कांग्रेस को दो बार चंदा दिया। एक बार केरल में कम्युनिस्ट सरकार को हटाने के लिए और दूसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिए। दुबे ने कहा कि यह उस समय के फेरा (अब पीएमएलए) कानून का स्पष्ट उल्लंघन था।
दुबे ने आरोप लगाया कि 2004 में जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार सत्ता में आई, तो उसी वर्ष रविंद्र सिंह को अमेरिका भेजा गया। उन्होंने सवाल उठाया कि 2005 से 2014 तक भारत सरकार ने उसे वापस लाने के लिए कोई प्रयास क्यों नहीं किया। उन्होंने कहा कि रविंद्र सिंह की सीआईए और अमेरिकी राजदूत मोयनिहान से बातचीत के सबूत मौजूद हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि कांग्रेस को फंडिंग इसी चैनल से मिलती रही।
भाजपा सांसद ने कहा कि जब नरेंद्र मोदी की सरकार 2014 में बनी, तब रविंद्र सिंह की अमेरिका में मौजूदगी आखिरी बार दर्ज की गई। लेकिन 2015-16 में उनकी मौत हो गई, जिसे उन्होंने एक साजिश माना। उन्हें डर था कि अगर मोदी सरकार ने रविंद्र सिंह को भारत बुलाया, तो पूरी सच्चाई उजागर हो जाएगी।
दुबे ने यह भी कहा कि सोवियत संघ ने भारत में 16 हजार से ज्यादा खबरें अपने एजेंडे के अनुसार प्रकाशित करवाईं, और मीडिया संस्थानों को खरीदा गया। उन्होंने कहा कि यहां तक कि महिला प्रेस क्लब का निर्माण भी सोवियत एजेंडे का हिस्सा था।
अपनी बातचीत में दुबे ने एक और उदाहरण दिया कि सुभद्रा जोशी, जो कांग्रेस की नेता थीं, उन्हें जर्मन फंडिंग के तहत 5 लाख रुपए दिए गए थे। जब वे चुनाव हार गईं, तो उन्हें इंडो जर्मन फोरम का अध्यक्ष बना दिया गया।
कांग्रेस पर भाजपा के आरोपों के जवाब में दुबे ने कहा कि हमें किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है। सभी को पता है कि आज भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2027 तक तीसरे स्थान पर होगा। लेकिन सवाल यह है कि कांग्रेस ने कैसे देश को विदेशियों के हाथों गिरवी रखा और उसके बदले में फंडिंग ली?
दुबे ने कहा कि अब समय आ गया है कि एक स्वतंत्र न्यायिक आयोग गठित किया जाए जो 1947 से लेकर 2014 तक कांग्रेस की विदेशी फंडिंग की पूरी जांच करे। उन्होंने कहा कि इस आयोग को यह भी जांच करनी चाहिए कि कौन-कौन नेता, अधिकारी और सांसद इसमें शामिल थे, और इस विदेशी पैसे के दम पर किस प्रकार भारत की नीति, मीडिया, और शासन प्रणाली को प्रभावित किया गया।