क्या 'ऑपरेशन सिंदूर' भारत के आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास की उद्घोषणा है?
सारांश
Key Takeaways
- ऑपरेशन सिंदूर भारत की आत्म-प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
- शांति बनाए रखने के लिए शक्ति की आवश्यकता है।
- गीता का ज्ञान मानव जीवन को समझने में मदद करता है।
- भारत आतंकवाद के खिलाफ मौन नहीं रहेगा।
- धर्म की रक्षा कर्म से होती है, प्रवचन से नहीं।
नई दिल्ली, 24 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय सेना का 'ऑपरेशन सिंदूर' केवल एक सैन्य अभियान नहीं था, बल्कि यह भारत की आत्म-प्रतिबद्धता, आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास की एक महत्वपूर्ण उद्घोषणा थी। हमने वैश्विक समुदाय को यह संदेश दिया कि भारत लड़ाई नहीं चाहता, लेकिन अगर हमें मजबूर किया गया तो हम संघर्ष से भागेंगे नहीं। यह बात रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को कही।
उन्होंने यह भी कहा कि शांति को बनाए रखने के लिए, उसके भीतर शक्ति की आवश्यकता होती है। निर्दोषों की रक्षा के लिए बलिदान देने का साहस भी आवश्यक है। जो लोग हमारी सहिष्णुता को कमजोरी समझते थे, उन्हें ऑपरेशन सिंदूर ने ऐसा उत्तर दिया जिसे वे कभी नहीं भूल पाएंगे।
रक्षा मंत्री ने कुरुक्षेत्र, हरियाणा में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय गीता सम्मेलन में कहा कि भारत गीता का देश है, जहां करुणा और युद्धभूमि में धर्म की रक्षा की प्रेरणा दोनों मौजूद हैं। गीता हमें यह सिखाती है कि शक्ति और शांति एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। आज भारत विश्व में शांति का संदेश फैलाता है, और पूरी दुनिया इसे शांति का प्रतीक मानती है। लेकिन वास्तविकता यह है कि शांति तभी टिकती है जब इसके पीछे आत्मविश्वास और बल हो। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हमने इस ज्ञान को हजारों वर्षों तक सुरक्षित रखा है।
उन्होंने कहा, “दुनिया के कई विचारक जैसे आइंस्टीन, थोरो, टी.एस. इलियट और एल्डस हक्सले ने गीता पढ़कर इसे मानव विकास का एक यूनिवर्सल मैनुअल माना। भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को यह सिखाया था कि युद्ध केवल धर्म की रक्षा के लिए लड़ा जा सकता है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमने उसी संदेश का पालन किया।
राजनाथ सिंह ने बताया कि कई विद्वानों का कहना है कि गीता ने उन्हें लीडरशिप, संतुलन और निर्णय लेने में नई स्पष्टता प्रदान की। यही कारण है कि आज गीता हर क्षेत्र में पढ़ी और समझी जाती है। यह मानव जीवन को समझाने का सबसे प्रभावी तरीका है।
उन्होंने कहा कि गीता का पहला संदेश यह है कि आत्मा