क्या पंडित हरिशंकर शर्मा की लेखनी ने समाज की कुरीतियों और रूढ़ियों पर तीखा प्रहार किया?

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क्या पंडित हरिशंकर शर्मा की लेखनी ने समाज की कुरीतियों और रूढ़ियों पर तीखा प्रहार किया?

सारांश

पंडित हरिशंकर शर्मा की लेखनी में हास्य और व्यंग्य का अद्भुत समन्वय है। उन्होंने समाज की कुरीतियों पर गहरी टिप्पणी की। उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं। जानिए उनके योगदान और साहित्यिक यात्रा के बारे में।

Key Takeaways

  • पंडित हरिशंकर शर्मा ने हिंदी साहित्य में गहरा प्रभाव छोड़ा।
  • उनकी रचनाएं समाज की बुराइयों का सामना करती थीं।
  • उन्होंने हास्य और व्यंग्य का अद्वितीय समन्वय प्रस्तुत किया।
  • उनका योगदान आज भी प्रासंगिक है।
  • वे स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय थे।

नई दिल्ली, 18 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। जब हम हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के महान हस्तियों की बात करते हैं, तो पंडित हरिशंकर शर्मा का नाम अनिवार्य रूप से सामने आता है। पंडित शर्मा एक प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि, लेखक, व्यंग्यकार और पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा समाज की कुरीतियों और रूढ़ियों पर एक तीखा प्रहार किया। उनकी लेखनी में हास्य और व्यंग्य का एक अद्वितीय मिश्रण था, जो न केवल मनोरंजक था, बल्कि समाज को जागरूक करने का कार्य भी करता था।

19 अगस्त 1891 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जन्मे पंडित हरिशंकर के पिता पंडित नाथूराम शंकर शर्मा, हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि थे। उन्हें बचपन से ही साहित्यिक वातावरण मिला, जो उनकी साहित्य में गहरी रुचि को बढ़ावा दिया।

हरिशंकर शर्मा की शिक्षा किसी औपचारिक स्कूल या कॉलेज में नहीं, बल्कि घर पर ही हुई। उन्होंने उर्दू, फारसी, गुजराती और मराठी जैसी भाषाओं का गहन अध्ययन किया। बाद में, उन्होंने हिंदी साहित्य और पत्रकारिता में अपने कौशल का प्रदर्शन किया। वह हिंदी के उन चुनिंदा लेखकों में से थे, जिन्होंने 'आर्यमित्र', 'भाग्योदय', 'आर्य संदेश', 'निराला', 'साधना', 'प्रभाकर', 'ज्ञानगंगा' और 'दैनिक दिग्विजय' जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया।

उर्दू, फारसी, गुजराती और मराठी भाषाओं में उनकी महारत ने उनकी रचनाओं को और समृद्ध किया। उन्होंने 'रत्नाकर', 'अभिनव हिंदी कोश', 'हिंदुस्तानी कोश', 'रामराज्य', 'पिंजरा पोल', 'चिड़ियाघर', 'घास-पात', 'महर्षि महिमा', 'वीरांगना वैभव' और 'हिंदी साहित्य परिचय' जैसी कृतियों का भी लेखन किया।

'पद्मश्री' और 'देव पुरस्कार' से सम्मानित हरिशंकर शर्मा उन गिने-चुने लेखकों में से थे, जिन्होंने हास्य और व्यंग्य को साहित्यिक स्तर पर स्थापित किया। उनकी रचनाएं केवल मनोरंजन के लिए नहीं थीं, बल्कि समाज की बुराइयों पर गहरी चोट करती थीं।

लेखनी के अलावा, हरिशंकर शर्मा का झुकाव स्वतंत्रता संग्राम की तरफ भी था। उन्होंने आजादी की लड़ाई में भी भाग लिया। हरिशंकर शर्मा का निधन 9 मार्च, 1968 को हुआ। उनकी मृत्यु हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के लिए एक बड़ी क्षति थी।

पंडित हरिशंकर शर्मा हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के एक अद्वितीय सितारे थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं और संपादकीय कार्य के जरिए समाज को एक नई दिशा दी। उनकी लेखनी में हास्य, व्यंग्य और सामाजिक चेतना का अद्भुत समन्वय था, जो आज भी प्रासंगिक है। उनकी कृतियां और विचार हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं।

Point of View

पंडित हरिशंकर शर्मा का योगदान न केवल साहित्यिक है, बल्कि सामाजिक भी है। उनकी रचनाएं हमें आज भी जागरूक करती हैं और समाज की बुराइयों पर करारा प्रहार करती हैं। ऐसी आवाजें हमारे समाज की आवश्यकता हैं।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

पंडित हरिशंकर शर्मा का जन्म कब हुआ?
पंडित हरिशंकर शर्मा का जन्म 19 अगस्त 1891 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ।
पंडित शर्मा ने कौन-कौन सी भाषाओं का अध्ययन किया?
पंडित शर्मा ने उर्दू, फारसी, गुजराती और मराठी जैसी भाषाओं का गहन अध्ययन किया।
पंडित हरिशंकर शर्मा को किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया?
उन्हें 'पद्मश्री' और 'देव पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
पंडित हरिशंकर शर्मा का निधन कब हुआ?
उनका निधन 9 मार्च, 1968 को हुआ।
उनकी लेखनी का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उनकी लेखनी का मुख्य उद्देश्य समाज की कुरीतियों और रूढ़ियों पर प्रहार करना था।