क्या पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी हैं काशी के कालिदास?

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क्या पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी हैं काशी के कालिदास?

सारांश

पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी, संस्कृत साहित्य में एक अद्वितीय व्यक्तित्व, काशी की पांडित्य परंपरा को नई पहचान दिलाने में सफल रहे। उनकी रचनाएं और योगदान आज भी प्रेरणा स्रोत हैं। जानें उनके जीवन और कार्यों के बारे में।

Key Takeaways

  • पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी का जन्म 22 अगस्त 1935 को हुआ।
  • उन्हें 'आधुनिक युग के कालिदास' के रूप में जाना जाता है।
  • उनकी कृति स्वातंत्र्यसंभवम् भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गाथा है।
  • उन्हें 1991 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
  • उनका निधन 21 मई 2021 को हुआ।

नई दिल्ली, 21 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। काशी के प्रतिष्ठित विद्वान महामहोपाध्याय पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी संस्कृत साहित्य के ऐसे सूर्य थे, जिन्होंने अपनी ज्ञानता से काशी की पांडित्य परंपरा को विश्व स्तर पर नई पहचान दिलाई। मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के नांदेड़ गांव में 22 अगस्त 1935 में जन्मे रेवा प्रसाद द्विवेदी ने संस्कृत साहित्य, काव्यशास्त्र और शिक्षा के क्षेत्र में अमर योगदान दिया।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष और संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के पूर्व प्रमुख रहे रेवा प्रसाद द्विवेदी ने अपनी रचनाओं और शोध के माध्यम से संस्कृत साहित्य को नई ऊंचाईयों तक पहुँचाया। 1950 में मध्य प्रदेश से काशी आने के बाद उन्होंने काशी की पांडित्य परंपरा को आत्मसात किया। काशी की पांडित्य परंपरा के प्रतिनिधि के रूप में उन्हें 'आधुनिक युग के कालिदास' की उपाधि दी गई।

रेवा प्रसाद द्विवेदी की सबसे उल्लेखनीय कृति स्वातंत्र्यसंभवम् है, जो 103 सर्गों का विशाल महाकाव्य है। इस महाकाव्य के लिए उन्हें 1991 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह महाकाव्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गाथा को संस्कृत में प्रस्तुत करता है।

इसके अलावा उन्होंने तीन महाकाव्य, 20 खंडकाव्य, दो नाटक और छह मौलिक साहित्यशास्त्र ग्रंथों की रचना की। उनकी रचनाएं आधुनिक और प्राचीन साहित्य के समन्वय का अनुपम उदाहरण हैं। वे जटिल से जटिल संस्कृत श्लोकों को इतने सरल ढंग से समझाते थे कि सामान्य विद्यार्थी भी उन्हें आसानी से ग्रहण कर लेते थे।

रेवा प्रसाद द्विवेदी को 1979 में राष्ट्रपति पुरस्कार और उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा विश्व भारती सम्मान से नवाजा गया, जो उनकी साहित्यिक योगदान को दर्शाता है।

काशी विद्वत् परिषद के संगठन मंत्री के रूप में उन्होंने परिषद को बौद्धिक ऊंचाई प्रदान की। सैकड़ों शोध पत्रों और ग्रंथों का संपादन कर उन्होंने संस्कृत साहित्य को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके मार्गदर्शन में 90 से अधिक शोधार्थियों ने शोध कार्य पूर्ण किया, जो आज विश्व भर में उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

उनके जीवन का एक रोचक पहलू यह था कि वे आधुनिक तकनीक को अपनाने में भी पीछे नहीं थे। वे अपने शोध और लेखन में आधुनिक उपकरणों का उपयोग करते थे, जो उस समय के विद्वानों में दुर्लभ था।

संस्कृत साहित्य और भारतीय संस्कृति की सेवा करते हुए पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी का 21 मई 2021 को निधन हो गया। उनकी रचनाएं आज भी संस्कृत साहित्य के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

Point of View

बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी विद्वता और योगदान ने संस्कृत साहित्य को नई ऊँचाई दी है। एक राष्ट्रीय संपादक के नाते, हमें इस तरह की प्रतिभाओं का सम्मान करना चाहिए, जिन्होंने ज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी का जन्म कब हुआ?
उनका जन्म 22 अगस्त 1935 को मध्य प्रदेश के नांदेड़ गांव में हुआ।
उन्हें किस उपाधि से सम्मानित किया गया?
'आधुनिक युग के कालिदास' की उपाधि से उन्हें सम्मानित किया गया।
उनकी प्रमुख कृति कौन-सी है?
उनकी प्रमुख कृति स्वातंत्र्यसंभवम् है, जो 103 सर्गों का विशाल महाकाव्य है।
उन्हें कौन से पुरस्कार मिले?
उन्हें 1979 में राष्ट्रपति पुरस्कार और उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा विश्व भारती सम्मान से नवाजा गया।
पंडित द्विवेदी का निधन कब हुआ?
उनका निधन 21 मई 2021 को हुआ।