क्या पीएम मोदी ने मशहूर कन्नड़ लेखक भैरप्पा के निधन पर दुख व्यक्त किया?

सारांश
Key Takeaways
- एसएल. भैरप्पा का निधन भारतीय साहित्य के लिए एक बड़ा नुकसान है।
- प्रधानमंत्री मोदी ने भैरप्पा के योगदान को सराहा।
- भैरप्पा की रचनाओं ने समाज को जागरूक किया।
- भैरप्पा ने कन्नड़ साहित्य को नई दिशा दी।
- भैरप्पा का लेखन आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा।
नई दिल्ली, २४ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रसिद्ध कन्नड़ लेखक और विचारक एसएल. भैरप्पा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। मोदी ने कहा कि भैरप्पा एक अद्भुत व्यक्तित्व थे, जिन्होंने देश की अंतरात्मा को झकझोरने और भारत की आत्मा को गहराई से समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारतीय साहित्य, विशेषकर कन्नड़ साहित्य में भैरप्पा का योगदान राष्ट्र के बौद्धिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ गया है। इतिहास, दर्शन और सामाजिक मुद्दों के प्रति उनके निडर दृष्टिकोण ने उन्हें विभिन्न पीढ़ियों और भौगोलिक क्षेत्रों में प्रशंसा दिलाई।
मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भैरप्पा के साथ एक पुरानी तस्वीर साझा करते हुए लिखा, "एसएल. भैरप्पा के निधन से, हमने एक ऐसे प्रखर व्यक्तित्व को खो दिया है जिन्होंने हमारी अंतरात्मा को झकझोर दिया और भारत की आत्मा में गहराई से उतर गए। एक निडर और शाश्वत विचारक के रूप में उन्होंने अपनी विचारोत्तेजक रचनाओं से कन्नड़ साहित्य को समृद्ध किया। उनके लेखन ने पीढ़ियों को चिंतन करने, प्रश्न करने और समाज के साथ और गहराई से जुड़ने के लिए प्रेरित किया।"
उन्होंने आगे कहा, "हमारे इतिहास और संस्कृति के प्रति उनका अटूट जुनून आने वाले वर्षों तक लोगों को प्रेरित करता रहेगा। इस दुखद घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं। ॐ शांति।”
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "एसएल. भैरप्पा के निधन से भारतीय साहित्य जगत में एक गहरा शून्य पैदा हो गया है। उन्होंने कन्नड़ भाषा में अपनी रचनाओं के जरिए हमारी समृद्ध परंपराओं, समाज के संघर्षों और मानवीय भावनाओं की गहराई को जीवंत किया। उनकी कालजयी कृतियां आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करती रहेंगी। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं।"
प्रसिद्ध कन्नड़ लेखक एसएल. भैरप्पा का बुधवार को बेंगलुरु में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह ९४ वर्ष के थे। भैरप्पा ने कन्नड़ में दो दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे हैं, जिनमें से कई का अन्य भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है।