क्या पीएम मोदी ने 'द इमरजेंसी डायरीज' में आपातकाल का अपना सफर साझा किया?

सारांश
Key Takeaways
- आपातकाल के दौरान नरेंद्र मोदी का सफर
- लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष की महत्ता
- अवसरों से सीखने का महत्व
- भविष्य की पीढ़ी को जागरूक करना
- राजनीतिक विचारधाराओं का समन्वय
नई दिल्ली, २५ जून (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में इमरजेंसी के ५० वर्ष पूरे होने के अवसर पर अपनी भूमिका से संबंधित एक पुस्तक को सोशल मीडिया पर साझा किया है। उन्होंने ‘द इमरजेंसी डायरीज’ में आपातकाल (१९७५-१९७७) के दौरान अपने अनुभवों को साझा किया है।
पीएम मोदी ने 'एक्स' पर पोस्ट करते हुए कहा, "आपातकाल के समय मैं एक युवा आरएसएस प्रचारक था। आपातकाल विरोधी आंदोलन मेरे लिए एक महत्वपूर्ण सीखने का अनुभव था। इसने हमारे लोकतांत्रिक ढांचे के संरक्षण की आवश्यकता को और दृढ़ किया। इसके अलावा, मुझे विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के लोगों से बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला।"
उन्होंने आगे कहा, "मुझे खुशी है कि ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन ने इन अनुभवों को एक पुस्तक के रूप में संकलित किया है, जिसकी प्रस्तावना एचडी देवेगौड़ा ने लिखी है, जो स्वयं आपातकाल विरोधी आंदोलन के एक प्रमुख नेता रहे हैं। 'द इमरजेंसी डायरीज' में मैंने आपातकाल (१९७५-१९७७) के दौरान के अपने अनुभवों को साझा किया है। यह उस समय की कई यादें ताजा करती है। मैं उन सभी से अनुरोध करता हूं, जिन्होंने आपातकाल के काले दिनों का सामना किया या जिनके परिवारों ने उस समय दुख झेले, वे अपने अनुभवों को सोशल मीडिया पर साझा करें। इससे युवाओं में उस शर्मनाक दौर के बारे में जागरूकता बढ़ेगी।"
इस पुस्तक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के २५ जून २०२४ को आपातकाल के काले दिनों को याद करते हुए दिए बयान का उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया, "भारत की नई पीढ़ी को कभी नहीं भूलना चाहिए कि संविधान को कैसे पूरी तरह नजरअंदाज किया गया, उसे तार-तार किया गया और देश को एक जेल में बदल दिया गया, जहां लोकतंत्र को पूरी तरह कुचल दिया गया।"
इस पुस्तक में आगे बताया गया, "१९७० के दशक के मध्य में जब भारत आपातकाल की लोहे की जंजीरों में जकड़ा था, लोकतंत्र कैद में था। उस समय नरेंद्र मोदी, जो तब एक युवा संघ प्रचारक थे, कई अन्य प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ इंदिरा गांधी के तानाशाही शासन के खिलाफ खड़े होने वाले नेताओं की पहली पंक्ति में थे। यह पुस्तक भारतीय लोकतंत्र के सबसे अंधेरे दौर के दौरान उनके अनकहे अनुभवों को उजागर करती है। आपातकाल के दौरान पीएम मोदी का सफर सत्तावाद के खिलाफ संघर्ष की एक अनूठी, जमीनी कहानी प्रस्तुत करता है। उनकी गुप्त गतिविधियों, खतरों से बाल-बाल बचने, और लोकतंत्र को बहाल करने की अटूट प्रतिबद्धता को इस किताब में देखा जा सकता है, जो उस डर और दमन के माहौल में उनके कार्यों को दर्शाती है।"
यह भी बताया गया, "उनकी आत्मकथा ‘संघर्ष मा गुजरात’ और अन्य प्रत्यक्षदर्शी विवरणों के आधार पर यह पुस्तक भारत के इतिहास के एक महत्वपूर्ण क्षण को रोशनी में लाती है और उस नेता के जीवन के एक रचनात्मक अध्याय को सामने लाती है, जो आज विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सर्वोच्च पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। यह कहानी है दृढ़ता, चतुराई और संविधान में निहित लोकतांत्रिक आदर्शों व संस्थानों को संरक्षित करने की अटल निष्ठा की। यह एक प्रमाण है कि कैसे मोदी जैसे मेहनती युवा कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में जनता के संकल्प ने एक ऐसे आंदोलन को आकार दिया, जिसने राष्ट्र के भाग्य को बदल दिया।