क्या प्रबोधिनी एकादशी पर दक्षिण भारत के मंदिरों में विशेष आयोजन होते हैं?
सारांश
Key Takeaways
- प्रबोधिनी एकादशी का दिन भगवान विष्णु के जागने का प्रतीक है।
- दक्षिण भारत के मंदिरों में विशेष आयोजन होते हैं।
- भक्तों की आस्था और श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
- गुरुवायूर मंदिर का महत्व विशेष है।
- एकादशी पर विशेष भोग और अनुष्ठान होते हैं।
नई दिल्ली, १ नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रबोधिनी एकादशी भारतभर में भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण के मंदिरों में श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा से जागते हैं और इसी दिन से हिंदू धर्म में विवाह, मुंडन और गृहप्रवेश जैसे शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।
देश के विभिन्न भागों में एकादशी पर मंदिरों में भव्य आयोजन होते हैं, लेकिन दक्षिण भारत में भगवान विष्णु को समर्पित कई मंदिर हैं। इनमें से एक मंदिर एकादशी को समर्पित है, जिसे गुरुवायुर एकादशी मंदिर के नाम से जाना जाता है।
केरल के तिरुच्चूर से लगभग ३२ किलोमीटर दूर स्थित प्रसिद्ध गुरुवायूर मंदिर में देवउठनी एकादशी के दिन विशेष अनुष्ठान आयोजित होते हैं। प्रबोधिनी एकादशी को यहाँ गुरुवायुर एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। गुरुवायूर का अर्थ है, भगवान श्री कृष्ण का बाल रूप। मंदिर में भगवान विष्णु की चार भुजाएँ हैं, जिनमें शंख, सुदर्शन चक्र, कमल और गदा हैं। कहा जाता है कि जब द्वारका नगरी डूब गई थी, तब प्रतिमा बहकर यहाँ आई थी और गुरु और वायु देवता ने इसे केरल में स्थापित किया। एकादशी के अवसर पर मंदिर दिनभर भक्तों के लिए खुला रहता है और १ महीने पहले से पूजा-पाठ शुरू हो जाते हैं। इस दिन हरी पत्तेदार सब्जियाँ और मीठे पकवानों का भोग लगाया जाता है।
महाराष्ट्र में पंढरपुर स्थित विट्ठल रुक्मिणी मंदिर भगवान विष्णु और भक्त की भक्ति का प्रतीक है। यहाँ भी एकादशी पर रातभर भजन-कीर्तन होता है। भक्त भगवान विष्णु को जागृत करने के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं और चंद्रभागा नदी के तट पर भगवान का स्मरण करते हैं। यहाँ हरी सब्जियाँ, सूजी का हलवा, चिवड़ा, मेवे और फलों का भोग मिलता है।
कहा जाता है कि भगवान विष्णु भक्त पुंडलिक की भक्ति से प्रसन्न हुए थे। भक्त ने भगवान को एक ईंट पर खड़े होकर इंतज़ार करने को कहा, क्योंकि वे अपने माता-पिता की सेवा में व्यस्त थे।
तमिलनाडु के एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर में भी प्रबोधिनी एकादशी का त्योहार श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह मंदिर भगवान विष्णु और भगवान शिव को समर्पित है। एकादशी पर मंदिर फूलों से सजाया जाता है और भक्त भगवान विष्णु और भगवान शिव का आशीर्वाद लेने आते हैं। यहाँ लक्ष्मी नारायण पूजा और आंवला अर्चना जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं।