क्या प्रशासन ने मेले में हीटर और छोटे एलपीजी सिलेंडर पर पाबंदी लगाई है, जिससे उपलों और मिट्टी के चूल्हों की मांग बढ़ गई है?
सारांश
Key Takeaways
- माघ मेला से ग्रामीण महिलाओं के लिए रोजगार के नए अवसर।
- प्रशासन की पाबंदियों से उपलों और चूल्हों की मांग में वृद्धि।
- महाकुंभ के महत्व और आस्था का महासमागम।
- साधु संतों और श्रद्धालुओं की परंपरागत भोजन पद्धतियां।
- आग लगने की घटनाओं के कारण नए सुरक्षा उपाय।
प्रयागराज, 21 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रयागराज में त्रिवेणी के तट पर 3 जनवरी से शुरू हो रहे माघ मेला 2026 की शुरुआत में अब केवल दो सप्ताह बचे हैं। आस्था और अध्यात्म का यह महासमागम लाखों लोगों के लिए जीविका का एक महत्वपूर्ण साधन बन रहा है। महाकुंभ नगर के अंतर्गत आने वाले गांवों में ग्रामीण महिलाओं के लिए इस महाकुंभ ने नए अवसर प्रदान किए हैं। संगम किनारे 3 जनवरी 2026 से प्रारंभ होने वाला माघ मेला होटल, ट्रैवल और टेंटेज, फूड जैसे औद्योगिक क्षेत्रों के साथ-साथ छोटे-मोटे काम करने वालों के लिए भी जीविका के अवसर उत्पन्न कर रहा है।
गंगा किनारे आकार ले रहे तंबुओं के इस नगर में 27 गांवों में पशुपालन से जुड़े परिवारों की 15 हजार से अधिक जनसंख्या के लिए यह आयोजन जीविका का एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है। नदी किनारे बसे कई गांवों में इन दिनों उपलों का नया बाजार विकसित हो रहा है। यहाँ परंपरागत रूप से गोबर से बने उपलों का निर्माण स्थानीय महिलाएं दिनभर करती हैं।
मेला क्षेत्र के गंगा किनारे बसे बदरा सोनौटी गांव की विमला यादव कहती हैं कि उनके घर में चार भैंस और गाय हैं, जिनसे वे सालभर उपले बनाते हैं और इन्हें इकट्ठा करते रहते हैं। माघ के महीने में कल्पवासमलावा खुर्द गांव की आरती सुबह से ही अपने घर की खाली रहने वाली महिलाओं के साथ मिट्टी के चूल्हे तैयार करने में जुट जाती हैं।
आरती बताती हैं कि माघ मेले में कल्पवास करने वाले श्रद्धालुओं का खाना इन्हीं चूल्हों पर पकाया जाता है। इसके लिए उनके पास अब तक सात हजार मिट्टी के चूल्हे तैयार करने के ऑर्डर मिल चुके हैं। साधु संतों के शिविरों में भी उपलों और चूल्हों की मांग बढ़ी है। प्रयागराज के सबसे अधिक कमाई करने वाले नाविक समाज में इस बार माघ मेले को लेकर खास उम्मीदें हैं। निषाद परिवार नई नाव संगम में उतारने की तैयारी कर रहा है, जिसका कारण महाकुंभ 2025 का सुखद अनुभव है।
दारागंज के दशाश्वमेध घाट की निषाद बस्ती में रहने वाले बबलू निषाद कहते हैं कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों को माघ मेले के एक महीने के लिए बुला लिया है। माघ मेले में सरकार द्वारा 12 से 15 करोड़ लोगों के आने का अनुमान है, जिसमें यदि 5 करोड़ लोग भी नावों से त्रिवेणी आए, तो एक बार फिर नाविक समाज के लिए यह एक सुनहरा अवसर होगा। महाकुंभ के आयोजन के बाद कल्पवास करने वालों की संख्या में हर बार इजाफा होता है।
एडीएम मेला दयानंद प्रसाद के अनुसार, इस बार माघ मेले में 6 हजार से अधिक संस्थाएं बसाई जा रही हैं, जिसमें 4 लाख से अधिक कल्पवासी भी शामिल होंगे। मेला क्षेत्र में बड़ी संस्थाएं आमतौर पर कुकिंग गैस के बड़े सिलेंडर का उपयोग करती हैं, क्योंकि उन्हें प्रतिदिन लाखों लोगों को भोजन कराना होता है, लेकिन धर्माचार्यों, साधु संतों और कल्पवासियों ने अभी भी अपनी पुरानी व्यवस्था बनाए रखी है।
कुछ स्थानों पर आग लगने की घटनाओं के बाद, मेला प्रशासन ने शिविरों में हीटर और छोटे गैस सिलेंडर के उपयोग पर रोक लगा दी है। इस नई व्यवस्था के कारण भी अब गांवों की महिलाओं द्वारा बनाए गए उपलों और मिट्टी के चूल्हों की मांग में वृद्धि हुई है।
तीर्थ पुरोहित प्रदीप तिवारी बताते हैं कि तीर्थ पुरोहितों के पास सबसे अधिक कल्पवासी रुकते हैं। उनकी पहली प्राथमिकता पवित्रता और परंपरा होती है, जिसके लिए वे मिट्टी के चूल्हों पर उपलों से बना भोजन तैयार करना पसंद करते हैं।