क्या प्रियंक कानूनगो ने 16 साल की उम्र में सहमति से यौन संबंध की अनुमति पर चिंता जताई?

सारांश
Key Takeaways
- प्रियंक कानूनगो ने 16 साल की उम्र में सहमति से यौन संबंध पर चिंता जताई।
- संविधान बच्चों के अधिकारों की गारंटी देता है।
- 18 साल से कम उम्र के बच्चों को सहमति देना संविधान के खिलाफ है।
- बाल विवाह के खिलाफ महात्मा गांधी के प्रयासों को कमजोर करेगा।
- कड़े कानून और जागरूकता की आवश्यकता है।
नई दिल्ली, 10 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने 16 साल की उम्र में बच्चों को सहमति से यौन संबंध बनाने की अनुमति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।
कानूनगो ने कहा कि यदि 16 साल की उम्र के बच्चों को सहमति से यौन संबंध की अनुमति दी जाती है, तो इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं और कुछ अपराधों को रोकना कठिन हो जाएगा। भारत का संविधान, जो डॉ. बीआर अंबेडकर द्वारा बनाया गया है, बच्चों के अधिकारों की गारंटी देता है और बच्चों की उम्र 18 वर्ष निर्धारित करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सहमति से यौन संबंध की अनुमति देना संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ होगा। इसके अतिरिक्त, उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा बाल विवाह के खिलाफ किए गए संघर्ष का उल्लेख किया और कहा कि 16 साल की उम्र में सहमति देना गांधी के प्रयासों को कमजोर करने जैसा होगा। यदि इस प्रकार की अनुमति दी जाती है, तो यह भारतीय सभ्यता पर हमला है।
उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट के एक प्रशासनिक फैसले का उल्लेख किया, जिसमें पॉक्सो एक्ट के तहत 16 से 18 वर्ष की आयु के मामलों में अभियुक्तों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी गई थी। यह संसद द्वारा बनाए गए कानून को दरकिनार करना और संसद को अंधेरे में रखकर कानून को तोड़ने जैसा है।
उन्होंने आगे बताया कि सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर चर्चा करते समय तमिलनाडु सरकार ने इस फैसले के लाभ और नुकसान से संबंधित कोई डेटा प्रस्तुत नहीं किया। यदि हमें बच्चों की ट्रैफिकिंग को रोकना है, तो सहमति वाले विचार को खारिज करना आवश्यक होगा। अधिकांश ऑनलाइन शोषणकर्ता बच्चों से सहमति लेकर ही उनका शोषण करते हैं। यदि सहमति की यह अवधारणा लागू की गई, तो भारत बच्चों के यौन शोषण को रोकने में विफल हो सकता है। बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए कड़े कानून और जागरूकता की आवश्यकता है। सहमति की उम्र को कम करने से बच्चों के खिलाफ अपराधों को बढ़ावा मिलेगा और समाज में व्यभिचार को प्रोत्साहन मिल सकता है।