हर पूजा-पाठ के बाद क्षमायाचना करना क्यों आवश्यक है?
सारांश
Key Takeaways
- पूजा समाप्ति पर क्षमायाचना का महत्व
- अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगना
- विनम्रता और आत्मचिंतन का प्रतीक
- रिश्तों में प्रेम और अपनापन बनाए रखना
- धार्मिक आस्था को मजबूत करना
नई दिल्ली, 10 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। सनातन धर्म में किसी भी देवी-देवता की पूजा में मंत्रों का अत्यधिक महत्व है। पूजा की हर क्रिया जैसे प्रार्थना, स्नान, ध्यान, भोग आदि के लिए अलग-अलग मंत्र निर्धारित किए गए हैं। इनमें से एक विशेष मंत्र है क्षमायाचना मंत्र।
कहा जाता है कि जब हम पूजा के अंत में भगवान से अपनी भूल-चूक के लिए क्षमा मांगते हैं, तभी हमारी पूजा पूर्ण होती है।
अधिकतर पूजा करते समय हमसे कई बार अनजाने में गलतियाँ हो जाती हैं, जैसे कभी उच्चारण में त्रुटि, कभी विधि में कमी या कभी ध्यान कहीं और चला जाता है। इसलिए पूजा के समापन पर हम भगवान से क्षमायाचना करते हैं। इसके लिए एक विशेष मंत्र है।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे॥
इस मंत्र का अर्थ है कि हे प्रभु, मुझे न तो आपको बुलाना आता है, न ही सही तरीके से पूजा करना। मैं आपकी आराधना की विधि नहीं जानता। मैं मंत्रहीन, क्रियाहीन और भक्तिहीन व्यक्ति हूं। कृपया मेरे द्वारा की गई पूजा को स्वीकार करें। यदि इस दौरान मुझसे कोई गलती हुई हो, तो मुझे क्षमा करें।
इसका उद्देश्य स्पष्ट है कि जब भी हम भगवान की पूजा करते हैं, तब हमसे अनजाने में कोई न कोई कमी या भूल होती है। इसलिए हमें पूजा के बाद भगवान से क्षमायाचना अवश्य करनी चाहिए।
जीवन में जब भी हमसे कोई गलती होती है, तो हमें तुरंत क्षमा मांग लेनी चाहिए, चाहे वह भगवान से हो या किसी व्यक्ति से। क्षमा मांगने से अहंकार समाप्त होता है और रिश्तों में प्रेम एवं अपनापन बना रहता है। यही सच्ची भक्ति और मानवता का आधार है।
इसलिए, पूजा के अंत में जब हम भगवान से क्षमा याचना करते हैं, यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि विनम्रता और आत्मचिंतन का प्रतीक भी है।