क्या देश में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां एकादशी पर चावल का महाप्रसाद बांटा जाता है?
सारांश
Key Takeaways
- जगन्नाथ पुरी मंदिर में एकादशी पर चावल का महाप्रसाद बांटा जाता है।
- यह परंपरा ब्रह्मदेव की कथा से जुड़ी है।
- देश के अन्य मंदिरों में एकादशी पर चावल खाना वर्जित है।
पुरी, 1 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। सभी को ज्ञात है कि एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना जाता है। हमारी दादी-नानी हमेशा कहती आई हैं कि एकादशी पर चावल का सेवन अशुभ होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा मंदिर है, जहां एकादशी के दिन चावल को भक्तों में महाप्रसाद स्वरूप बांटा जाता है और सभी उसे ग्रहण करते हैं?
यह अनोखी परंपरा ओडिशा के प्रसिद्ध जगन्नाथ पुरी मंदिर की है, जहां एकादशी के दिन भी भक्तों को चावल का महाप्रसाद दिया जाता है। इससे यह सवाल उठता है कि जब पूरे देश में एकादशी पर चावल वर्जित है तो पुरी में इसे क्यों खाया जाता है?
इसका कारण एक दिलचस्प कथा है। कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मदेव भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पुरी आए और महाप्रसाद ग्रहण करना चाहा। लेकिन, जब वे पहुंचे, तब तक सारा महाप्रसाद समाप्त हो चुका था। इस बीच, उन्होंने देखा कि एक कोने में कुछ चावल बचे हैं, जिन्हें एक कुत्ता खा रहा था।
ब्रह्मदेव ने उन चावलों को उठाकर आदरपूर्वक खाना शुरू कर दिया। यह देखकर भगवान जगन्नाथ स्वयं प्रकट हुए और कहा, 'हे ब्रह्मदेव! आपने मेरे महाप्रसाद को ग्रहण किया है। अब से मेरे इस धाम में एकादशी के दिन भी महाप्रसाद के रूप में चावल दिया जाएगा।'
तब से यह परंपरा आज तक चल रही है। हालाँकि, देश के अन्य मंदिरों में एकादशी के दिन चावल का सेवन वर्जित माना जाता है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि एकादशी के दिन चावल खाना पुण्य को नष्ट करता है। चावल को देवताओं का भोजन माना गया है, इसलिए उनके सम्मान में इस दिन लोग चावल से परहेज करते हैं।
एक अन्य मान्यता है कि महर्षि मेधा ने माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए एकादशी के दिन अपने शरीर का त्याग किया था और उनका अगला जन्म चावल के रूप में हुआ। इसी कारण इस दिन चावल का सेवन न करने की परंपरा है।