क्या राहुल गांधी की तस्वीर वाले राहत पैकेजों पर सियासत हो रही है?

सारांश
Key Takeaways
- राहत कार्यों का प्राथमिकता होनी चाहिए।
- राजनीतिकरण से बचना चाहिए।
- बाढ़ पीड़ितों की सहायता में सभी दलों को एकजुट होना चाहिए।
नई दिल्ली, 7 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। बाढ़ से प्रभावित पंजाब में वितरित किए गए राहत पैकेट्स पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की तस्वीर के प्रकाशित होने के बाद से राजनीतिक हलचल बढ़ गई है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह पंजाब में बाढ़ राहत प्रयासों को राजनीतिक रंग देने का प्रयास कर रही है।
भाजपा के प्रवक्ता ने राष्ट्र प्रेस का एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें कांग्रेस द्वारा भेजी गई बाढ़ राहत सामग्री को दिखाया गया है। इस सामग्री पर राहुल गांधी की पुरानी तस्वीर वाले स्टिकर और कांग्रेस नेताओं के बड़े पोस्टर लगे हुए थे।
भाजपा का कहना है कि कांग्रेस राहत कार्यों की बजाय राजनीति को प्राथमिकता दे रही है, और यह मामला 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ के दौरान भी देखने को मिला था।
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने इस मुद्दे पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखा, "यदि कांग्रेस का उद्देश्य पंजाब में बाढ़ राहत पहुंचाना है, तो वह पार्टी के चुनाव चिन्ह के साथ राहुल गांधी के स्टिकर क्यों चिपका रही है?"
उन्होंने अपने पोस्ट में आगे लिखा, "यह स्पष्ट है कि कांग्रेस की प्राथमिकता बाढ़ राहत नहीं, बल्कि बाढ़ राहत का राजनीतिकरण है। उत्तराखंड में 2013 में भी कांग्रेस ने गांधी-वाड्रा परिवार के लिए राहत भेजने में देरी की थी। उनके लिए राजनीति पहले है, राहत बाद में।"
2013 में उत्तराखंड त्रासदी के दौरान, रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ में राशन और खाद्य सामग्री ले जा रहे लगभग 500 ट्रक प्रशासन की मंजूरी न मिलने के कारण ऋषिकेश, देहरादून, हरिद्वार और हल्द्वानी में कई दिनों तक फंसे रहे। इनमें से 96 ट्रक कथित तौर पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के द्वारा भेजे गए थे।
हरिद्वार-गंगोत्री बाईपास पर 230 किलोमीटर तक फंसे इन ट्रकों के कारण भारी ट्रैफिक जाम हो गया था और राहत सामग्री दूरदराज के प्रभावित इलाकों तक नहीं पहुंच पाई थी।
उस समय ट्रक ड्राइवरों ने बताया कि देहरादून पहुंचने के बाद उन्हें श्रीनगर की ओर जाने के लिए कहा गया, लेकिन वे ईंधन खत्म होने और मार्गदर्शन की कमी के कारण फंसे रह गए। कई ड्राइवरों ने कहा कि उनके पास खाने-पीने और ईंधन के लिए पैसे नहीं थे, और न ही पार्टी या सरकार की तरफ से कोई मदद के लिए संपर्क किया गया।