क्या राज्यसभा में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में मुख्य न्यायधीश को शामिल किया जाए?
सारांश
Key Takeaways
- चुनाव आयोग की निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए मुख्य न्यायाधीश की भूमिका आवश्यक है।
- नियुक्तियों में धार्मिक या जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए।
- मतदाता को बूथ तक लाने या रिश्वत देना एक गंभीर अपराध है।
- ईवीएम की बजाय मतपत्रों से चुनाव कराना अधिक उचित है।
- चुनाव आयोग में सुधार के लिए सक्रिय कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
नई दिल्ली, १५ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। चुनाव सुधार पर चर्चा करते हुए समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद राम गोपाल यादव ने कहा कि जिस दिन चुनाव आयोग के गठन में बदलाव किया गया, मुख्य न्यायाधीश को हटाकर उनके स्थान पर एक कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया। इससे जनता को यह संदेश मिला कि यह इलेक्शन कमीशन की निष्पक्षता को समाप्त करने का प्रयास है।
उन्होंने कहा कि पुरानी प्रणाली को फिर से लागू किया जाना चाहिए, जिसमें चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और लोकसभा के नेता विपक्ष शामिल होते थे। राम गोपाल यादव ने राज्यसभा में कहा कि चुनाव से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति धार्मिक या जाति के आधार पर नहीं होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि इन सभी चीजों से अलग हटकर ये नियुक्तियां निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए। उन्होंने सदन में कहा कि उत्तर प्रदेश में कुछ उपचुनाव हुए थे। इन चुनावों में जो बीएलओ थे, उनमें से जितने भी यादव और मुसलमान बीएलओ थे, उन्हें एक-एक करके हटा दिया गया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग की जानकारी में यह विषय लाया गया। लिस्ट में पहले लोगों के नाम थे लेकिन बाद में ये नाम हटा दिए गए। केवल कुंदरकी में गलती से एक मुस्लिम बीएलओ रह गया।
उन्होंने कहा कि पीपुल्स रिप्रजेंटेशन एक्ट के अनुसार मतदाता को बूथ तक लाना या रिश्वत देना एक अपराध है। यदि यह सिद्ध हो जाता है, तो चुनाव रद्द हो जाता है। लेकिन हमनें देखा कि ट्रेन में कैसे लोग आ रहे थे। उन्होंने कहा कि बिहार में चुनाव से ठीक पहले जिस तरह से पैसे बांटे गए, अगर टीएन शेषन जैसे चुनाव आयुक्त होते, तो चुनाव स्थगित या रद्द हो जाता। इसे करप्ट प्रैक्टिस और रिश्वत बताया।
उन्होंने कहा कि सत्ता में १०० साल बने रहिए लेकिन जनता की नजर में सही बने रहिए। पहले जब मतदान होता था, तो राजनीतिक दलों को उस गाड़ी का नंबर दिया जाता था जिससे कि मतदान की पेटियां ले जाई जाती थीं। चुनाव के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता मोटरसाइकिल से इन गाड़ियों के पीछे स्ट्रांग रूम तक जाते थे। स्ट्रांग रूम में ईवीएम या बैलेट पेपर की पेटियां रखी जाती थीं, और वहां विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मौजूद होते थे। इसके बाद स्ट्रांग रूम को सील किया जाता था। अब यह प्रक्रिया प्रैक्टिस में नहीं रही।
उन्होंने आगे कहा, "खाली ईवीएम को स्ट्रांग रूम में नहीं रखा जाना चाहिए। यह चुनाव आयोग का निर्देश भी है, लेकिन फिर भी खाली ईवीएम स्ट्रांग रूम में रखी जाती हैं। सरकार भले ही आपकी हो, लेकिन इस देश के लगभग ६० प्रतिशत लोग आपके पक्ष में नहीं हैं। ये सभी लोग ईवीएम के खिलाफ हैं। जनमत की इच्छा का सम्मान करते हुए ईवीएम की बजाय मतपत्रों से चुनाव कराए जाने चाहिए। ईवीएम जैसी मशीन पूरी दुनिया में एक-दो पिछड़े देशों को छोड़कर कहीं इस्तेमाल नहीं की जाती है। इसलिए ईवीएम की बजाय बैलेट से चुनाव कराना चाहिए।