क्या राम की नगरी अयोध्या में यमराज का मेला लगता है? जानिए अनोखी परंपरा

सारांश
Key Takeaways
- यमराज का मेला अयोध्या की एक अनोखी परंपरा है।
- यह दीपावली के तीसरे दिन मनाया जाता है।
- श्रद्धालु सरयू नदी में स्नान कर यमराज की पूजा करते हैं।
- यह दिन भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है।
- यमराज की आराधना से जीवन में संतुलन और अनुशासन बढ़ता है।
अयोध्या, 23 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भगवान श्रीराम की पावन नगरी अयोध्या हर दिन भक्ति, आस्था और अध्यात्म का केंद्र बनी रहती है, लेकिन दीपावली के तीसरे दिन यहां एक अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है। इस दिन भक्त यमराज यानी मृत्यु के देवता की पूजा करते हैं। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि पौराणिक कथा और पारिवारिक प्रेम का भी प्रतीक है।
मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम ने पृथ्वी से वैकुंठ जाने का निश्चय किया, तब यमराज स्वयं उन्हें लेने अयोध्या आए थे। कहा जाता है कि उन्होंने जमथरा घाट पर विश्राम किया था और वहीं से आगे बढ़कर भगवान श्रीराम ने गुप्तार घाट पर जल समाधि ली थी। इसी स्मृति में हर वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि, जिसे यम द्वितीया कहा जाता है, अयोध्या के सरयू तट स्थित यमथरा घाट पर भव्य पूजा और मेला आयोजित किया जाता है।
प्रातःकाल से ही श्रद्धालु सरयू नदी में स्नान कर भयमुक्त और दीर्घायु जीवन की कामना करते हैं। भक्तों का विश्वास है कि इस दिन यमराज की पूजा करने से व्यक्ति को यमभय से मुक्ति और मृत्यु पर विजय का आशीर्वाद मिलता है।
खासतौर पर बहनें इस दिन व्रत रखती हैं और अपने भाइयों की दीर्घायु और कल्याण के लिए यमराज से प्रार्थना करती हैं। यह दिन भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक भी माना जाता है।
कहा जाता है कि यमराज ने यह तपोस्थली स्वयं अयोध्या माता से प्राप्त की थी, इसलिए यहां की पूजा का महत्व अन्य स्थानों से कहीं अधिक है। यमथरा घाट पर इस दिन भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। आरती, भजन, दीपदान और मेला पूरे वातावरण को आध्यात्मिक बना देते हैं। दीपावली के तीसरे दिन अयोध्या का यह आयोजन सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि आस्था, प्रेम और पौराणिक इतिहास का संगम है।
श्रद्धालु यह मानते हैं कि यमराज की आराधना करने से न केवल मृत्यु का भय दूर होता है, बल्कि जीवन में संतुलन, अनुशासन और कर्म की चेतना भी बढ़ती है।