क्या रामदाना मात्र अनाज है, या सेहत का खजाना?

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क्या रामदाना मात्र अनाज है, या सेहत का खजाना?

सारांश

रामदाना, जो एक पौष्टिक अनाज है, ने अंतरिक्ष में भी अपनी जगह बनाई है। इसकी फसल का इतिहास और स्वास्थ्य लाभ जानें। क्या यह अनाज हमारी सेहत के लिए एक खजाना है?

Key Takeaways

  • रामदाना एक पौष्टिक अनाज है जो विभिन्न स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
  • यह पूरी तरह ग्लूटेन फ्री होता है।
  • इसकी खेती कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी की जा सकती है।
  • रामदाना की लागत अपेक्षाकृत कम है, जिससे किसान लाभ कमा सकते हैं।
  • इसका सेवन कैंसर से बचाव में मदद कर सकता है।

नई दिल्ली, 22 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। रामदाना, जिसे चौलाई या राजगिरा भी कहा जाता है, कभी उपवास के दौरान एक महत्वपूर्ण आहार और पोषण से भरपूर अनाज था। 3 अक्टूबर 1985 को इसे स्पेस शटल अटलांटिस में भेजकर अंतरिक्ष में अंकुरित किया गया, और इससे कुकीज भी बनाई गईं। दुर्भाग्य से, यह अनाज, जो अब अंतरिक्ष तक पहुंच चुका है, आज धरती पर लगभग भुला दिया गया है।

पहाड़ों में इसे मंडुवे यानी कोदों की फसल के साथ मिलाकर बोया जाता था। जब खेतों में लाल, सिंदूरी और भूरे रंग के मोटे-चपटे गुच्छे जैसे पौधे पकते थे, तो उनके बीज रामदाना कहलाते थे। छोटे पौधों का उपयोग चौलाई की हरी सब्जी बनाने में होता था। रामदाने के बीजों से खीर, दलिया और स्वादिष्ट रोटियां बनाई जाती थीं। लेकिन अब यह फसल पहाड़ों और मैदानों दोनों जगह कम दिखाई देती है।

रामदाने का इतिहास बेहद रोचक है। इसका मूल स्थान पेरू माना जाता है और यह हजारों वर्ष पहले दक्षिणी अमेरिका के एज़टेक और मय सभ्यताओं में मुख्य भोजन के रूप में प्रयोग होता था। वहां इसे पवित्र फसल माना जाता था और धार्मिक अनुष्ठानों में इसका विशेष महत्व था। लेकिन सोलहवीं शताब्दी में जब स्पेनिश सेनापति हरनांडो कार्टेज ने वहां आक्रमण किया, तो उसने चौलाई की खेती को पूरी तरह नष्ट कर दिया। खेतों को जला दिया गया और आदेश जारी हुआ कि जो भी चौलाई उगाएगा, उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। नतीजा यह हुआ कि वहां चौलाई की खेती लगभग समाप्त हो गई। हालांकि, दुनिया के अन्य देशों में इसकी खेती जारी रही और आज भी दुनिया भर में चौलाई की 60 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।

भारत में चौलाई की विभिन्न प्रजातियां अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं। ‘अमेरेंथस गैंगेटिकस’ लाल पत्तियों वाली चौलाई है, जिसे लाल साग कहा जाता है। ‘अमेरेंथस पेनिकुलेटस’ हरी चौलाई कहलाती है, जबकि ‘अमेरेंथस काडेटस’ से रामदाने के बीज प्राप्त होते हैं। खास बात यह है कि एक पौधे से लगभग एक किलो तक बीज मिल जाते हैं और यह फसल कम वर्षा वाले सूखे इलाकों में भी आसानी से उगाई जा सकती है।

रामदाना पोषण का खजाना है। इसमें 12 से 15 प्रतिशत प्रोटीन, 6 से 7 प्रतिशत वसा, साथ ही पर्याप्त मात्रा में फीनाल्स और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। यह पूरी तरह ग्लूटेन फ्री होता है और इसलिए सीलिएक रोग या ग्लूटेन से जुड़ी अन्य समस्याओं से पीड़ित लोगों के लिए यह एक उत्तम विकल्प है। इसमें मौजूद प्रोटीन शरीर की कोशिकाओं की मरम्मत और नई कोशिकाओं के निर्माण में मदद करता है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। कैल्शियम की प्रचुरता इसे हड्डियों को मजबूत बनाने वाला भोजन बनाती है। इसके अलावा, यह ब्लड कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित कर हृदय रोगों से बचाता है और डायबिटीज के खतरे को कम करता है। वैज्ञानिक अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि राजगिरा का तेल खराब कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स को घटाने में मदद करता है।

रामदाने का सेवन कैंसर से बचाव में भी लाभकारी माना जाता है क्योंकि इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन-ई कोशिकाओं को फ्री रेडिकल्स से बचाते हैं। इसमें लाइसिन नामक अमीनो एसिड की भी भरपूर मात्रा होती है, जो प्रोटीन संश्लेषण में सहायक है। साथ ही, इसमें पाया जाने वाला जिंक और विटामिन-ए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और आंखों की दृष्टि सुधारने में मददगार है। फाइबर की अधिकता इसे पाचन क्रिया को बेहतर बनाने वाला आहार बनाती है। फाइबर देर तक पेट भरा रखता है, जिससे वजन नियंत्रण में रहता है। गर्भवती महिलाओं के लिए भी यह लाभकारी है क्योंकि यह कैल्शियम, आयरन और विटामिन-सी जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है।

खेती की दृष्टि से रामदाना खरीफ और रबी दोनों मौसमों में उगाया जा सकता है। यह फसल हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, बिहार, गुजरात, बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में उगाई जाती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए गर्म और नम जलवायु उपयुक्त है। इसकी कुछ उन्नत किस्मों में जीए-1, जीए-2 और अन्नपूर्णा प्रमुख हैं। जीए-1 किस्म लगभग 110 दिनों में तैयार होती है और 20 से 23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। जीए-2 लाल बाली वाली किस्म है जो करीब 100 दिनों में पक जाती है और 23 से 25 क्विंटल तक उपज देती है। अन्नपूर्णा किस्म 105 दिनों में तैयार होती है और 20 से 22 क्विंटल उपज देती है।

खेती के लिए खेत की एक गहरी जुताई और 2-3 हल्की जुताई जरूरी है। बीज की मात्रा एक किलो प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती है। बुवाई छिटकवां विधि या लाइन विधि से की जाती है। पौधों की दूरी 15 सेंटीमीटर और कतारों की दूरी 45 सेंटीमीटर रखी जाती है। खेत में 60 किलो नत्रजन, 40 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। निराई-गुड़ाई दो बार आवश्यक है। फसल पकने पर बाली पीली पड़ने लगती है, तब कटाई कर ली जाती है। औसतन 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है।

रामदाने की खेती में लागत अपेक्षाकृत कम आती है। एक एकड़ खेती में लगभग 8 से 10 हजार रुपये खर्च होते हैं और उपज 15 से 18 क्विंटल तक हो सकती है। मंडी में रामदाना 3500 से लेकर 7200 रुपये प्रति क्विंटल तक बिकता है। इस तरह एक एकड़ से 50 हजार रुपये तक का शुद्ध मुनाफा संभव है। हालांकि, फसल पर कीट और बीमारियों का आक्रमण भी होता है। ‘बिहार हेयरी कैटरपिलर’ इसकी पत्तियों और तनों को नुकसान पहुंचाती है, जबकि ब्लास्ट और सड़न जैसी बीमारियां भी प्रभावित करती हैं। इनके नियंत्रण के लिए कीटनाशक और फफूंदनाशक का छिड़काव करना पड़ता है।

Point of View

हमें अपने पारंपरिक अनाजों की महत्ता को समझना होगा। रामदाना जैसे अनाज न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का भी हिस्सा हैं। हमें इसे पुनः अपने आहार में शामिल करने की आवश्यकता है।
NationPress
22/09/2025

Frequently Asked Questions

रामदाना के क्या स्वास्थ्य लाभ हैं?
रामदाना में प्रोटीन, फाइबर, और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो हृदय स्वास्थ्य, पाचन, और वजन प्रबंधन में मदद करते हैं।
रामदाना को कब बोया जा सकता है?
रामदाना को खरीफ और रबी दोनों मौसमों में बोया जा सकता है।
रामदाना की खेती में लागत कितनी आती है?
रामदाना की खेती में एक एकड़ में लगभग 8 से 10 हजार रुपये खर्च होते हैं।
रामदाना का तेल कैसे फायदेमंद है?
रामदाना का तेल खराब कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स को घटाने में मदद करता है।
क्या रामदाना गर्भवती महिलाओं के लिए लाभकारी है?
जी हां, रामदाना गर्भवती महिलाओं के लिए लाभकारी है क्योंकि इसमें कैल्शियम, आयरन और विटामिन-सी जैसे पोषक तत्व होते हैं।