क्या रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग भगवान राम से जुड़ा है?

सारांश
Key Takeaways
- रामेश्वरम भगवान राम का पवित्र तीर्थ स्थल है।
- यहां शिवलिंग की स्थापना धार्मिक महत्व रखती है।
- अग्निकुंड में स्नान करने से पवित्रता मिलती है।
- यह स्थान दक्षिण भारत की धार्मिक यात्रा का केंद्र है।
- राम सेतु का ऐतिहासिक महत्व है।
नई दिल्ली, 8 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। महादेव जिनकी पूजा सभी देवताओं द्वारा की जाती है, और जो स्वयं महादेव की आराधना करते थे, यानी प्रभु श्री राम, उनके नाम से जुड़ा द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग को लेकर कहा जाता है कि इसका नाम रामेश्वर इसलिए पड़ा क्योंकि जो प्रभु राम के ईश्वर हैं, यानी रामेश्वर, वहीं दूसरी तरफ पुराणों के अनुसार भगवान भोलेनाथ ने इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा, "राम: ईश्वर: यस्य, स: रामेश्वर:।" यानी भगवान शिव के अनुसार भगवान राम जिसके ईश्वर हैं, वही रामेश्वर (शिव) हैं।
इस ज्योतिर्लिंग की महिमा को आप आसानी से समझ सकते हैं। भगवान राम द्वारा इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के कारण इसे रामेश्वरम कहा गया है। यहां स्थापित शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। उत्तर में काशी की तरह का महत्व दक्षिण में रामेश्वरम का है।
कहा जाता है कि प्रभु श्रीराम ने रावण का अंत कर सीताजी को वापस पाया तो उन्हें ब्राह्मण हत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्त होने के लिए प्रभु श्रीराम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करने का निर्णय लिया। उन्होंने हनुमान को कैलाश से शिवलिंग लाने का आदेश दिया। हनुमान जी को शिवलिंग लाने में देर हो गई तो मां सीता ने समुद्र किनारे रेत से ही शिवलिंग की स्थापना कर दी। यही शिवलिंग 'रामनाथ' कहलाता है। वहीं, हनुमान द्वारा लाए गए शिवलिंग को पहले से स्थापित शिवलिंग के पास ही स्थापित किया गया, जिसे 'हनुमदीश्वर' के नाम से जाना जाता है। ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी पूजित हैं।
रामेश्वरम का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है। इस मंदिर के खूबसूरत गलियारे में 108 शिवलिंग और गणपति के दर्शन होते हैं। यहां दर्शन और पूजा करने से ब्राह्मण हत्या जैसे पापों से मुक्ति मिलती है।
यहां रामेश्वरम में महादेव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन से पहले अग्निकुंड में स्नान करना बेहद पवित्र माना गया है। रामेश्वरम मंदिर के भीतर 22 कुंड हैं। मान्यता है कि इन पवित्र कुंडों को भगवान श्री राम ने अपने बाण से बनाया था। चारों ओर समुद्र का खारा पानी है, जबकि इन कुंडों का पानी मीठा है। इसे 'अग्नि तीर्थम' कहा जाता है, और मान्यता है कि यहां स्नान करने से सभी बीमारियां दूर होती हैं और सभी पापों का नाश होता है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में इस मंदिर का उल्लेख है...
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः। श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि॥
जो भगवान श्री रामचन्द्रजी द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम में अनेक बाणों द्वारा पुल बांधकर स्थापित किए गए, उन श्री रामेश्वर को मैं नियमित रूप से प्रणाम करता हूं।
यहां पास ही स्थित कोथंडारामस्वामी मंदिर भगवान राम को समर्पित है और रामेश्वरम के धनुषकोडी क्षेत्र में है। ऐसा माना जाता है कि यह वह स्थान है, जहां रावण के छोटे भाई विभीषण ने लंका छोड़ने के बाद भगवान राम से शरण मांगी थी। इसलिए, कोथंडारामस्वामी मंदिर में विभीषण की भी पूजा की जाती है।
यहां पंचमुखी हनुमान मंदिर भी है, जो भगवान हनुमान को समर्पित एक अद्वितीय मंदिर है। इसकी हनुमान की मूर्ति में पांच मुख हैं, जो प्रत्येक देवता के अलग पहलू को दर्शाते हैं। ये मुख हनुमान, नरसिंह, गरुड़, वराह और हयग्रीव हैं।
यहां गंधमाधन पर्वत एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहां भगवान राम ने एक चट्टान पर अंकित चक्र (पहिया) पर अपने पदचिह्न छोड़े थे।
वहीं पास ही में राम सेतु है। चूना पत्थर की चट्टानों से निर्मित यह सेतु भारत को लंका से जोड़ता है। 30 किलोमीटर लंबा यह पुल धनुषकोडी और श्रीलंका के मन्नार द्वीप को जोड़ता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राम सेतु का निर्माण वानर सेना द्वारा लंका पहुंचने के लिए किया गया था ताकि देवी सीता को बचाया जा सके और राक्षस रावण का वध किया जा सके।
यहां श्री रामनाथस्वामी मंदिर से मात्र 1 किमी की दूरी पर लक्ष्मण तीर्थ है, जहां भगवान शिव की पूजा करने से पहले भगवान लक्ष्मण ने स्नान किया था।
पास ही सुग्रीव तीर्थ है, जो वानर राजा सुग्रीव को समर्पित है, जिन्होंने राक्षस रावण के खिलाफ युद्ध में भगवान राम की सहायता की थी। इसके साथ जटायु तीर्थ मंदिर भी है, जो जटायु को समर्पित है, जिन्होंने देवी सीता को राक्षस रावण के कब्जे से छुड़ाने के प्रयास में राक्षस रावण के खिलाफ युद्ध किया था।
इसके साथ पंबन के रास्ते में विलोंडी तीर्थ है, जहां भगवान राम ने अपना धनुष और बाण दफनाया था और समुद्र में बाण डुबोकर खारे पानी को मीठे पीने के पानी में बदलकर देवी सीता की प्यास बुझाई थी। धनुषकोडी के रास्ते में जड़ तीर्थ है, जहां भगवान राम ने भगवान शिव की पूजा करने से पहले अपने बाल धोए थे।