क्या राष्ट्रपति मुर्मू ने प्रशिक्षु अधिकारियों से कहा- भारत की आत्मा का राजदूत बनकर कार्य करें?

सारांश
Key Takeaways
- भारत की संस्कृति के मूल्यों का राजदूत बनना जरूरी है।
- भू-राजनीतिक परिवर्तनों के प्रति अनुकूलनशीलता आवश्यक है।
- सांस्कृतिक कूटनीति का महत्व बढ़ रहा है।
- भारत की आवाज का महत्व बढ़ते वैश्विक संदर्भ में है।
- 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य के लिए कूटनीतिक प्रयास आवश्यक हैं।
नई दिल्ली, 19 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय विदेश सेवा (2024 बैच) के प्रशिक्षु अधिकारियों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से एक महत्वपूर्ण मुलाकात की। यह संवाद राष्ट्रपति भवन में मंगलवार को हुआ। राष्ट्रपति मुर्मू ने अधिकारियों को इस सेवा में शामिल होने की बधाई दी।
उन्होंने अधिकारियों से यह अपील की कि वे भारतीय सभ्यता के मूल्यों (शांति, बहुलवाद, अहिंसा और संवाद) को अपने साथ ले चलें। इसके साथ ही, उन्होंने कहा कि उन्हें हर संस्कृति के विचारों और दृष्टिकोणों के प्रति खुले रहना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा, "आज दुनिया में भू-राजनीतिक बदलाव, डिजिटल क्रांति, जलवायु परिवर्तन और विवादित बहुपक्षवाद के संदर्भ में तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। आपके चपलता और अनुकूलनशीलता ही सफलता की कुंजी बनेगी।"
राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि भारत विश्व की प्रमुख चुनौतियों का समाधान करने में एक अनिवार्य हिस्सा है। भारत न केवल सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति भी है। आपकी आवाज का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने कहा कि भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी विश्व में भारत का पहला चेहरा होंगे।
उन्होंने सांस्कृतिक कूटनीति के बढ़ते महत्व को रेखांकित किया और कहा कि हृदय और आत्मा से बने संबंध हमेशा मजबूत होते हैं। योग, आयुर्वेद, और भारतीय कला की समृद्ध विरासत को विदेशों में प्रदर्शित करने के लिए अधिक रचनात्मक प्रयासों की आवश्यकता है।
राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि हमारे कूटनीतिक प्रयासों को घरेलू आवश्यकताओं और 2047 तक विकसित भारत बनने के लक्ष्य के साथ जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने युवा अधिकारियों से आग्रह किया कि वे न केवल भारत के हितों के संरक्षक बनें, बल्कि उसकी आत्मा के राजदूत भी बनें।