क्या रविवार का व्रत सुख-समृद्धि के लिए करें? जानें विधि और लाभ!
सारांश
Key Takeaways
- रविवार का व्रत सुख और समृद्धि का साधन है।
- शुद्धता के साथ पूजा करना आवश्यक है।
- गुड़ और तांबे का दान करें।
- इस दिन कुछ वर्जित क्रियाओं से बचें।
- सूर्य देव की पूजा से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
नई दिल्ली, 28 जून (राष्ट्र प्रेस)। रविवार का दिन भगवान भास्कर के लिए समर्पित होता है। अग्नि पुराण में सूर्य देव को साक्षात ब्रह्म कहा गया है, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का दान करते हैं। इस दिन की विशेष पूजा विधि से इच्छित लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (सुबह 9 बजे 14 मिनट तक) 29 जून को आएगी। इस दिन सूर्य मिथुन राशि में रहेंगे, और चंद्रमा कर्क से सिंह राशि में प्रवेश करेगा। दृक पंचांग के अनुसार, 29 को चतुर्थी तिथि सुबह 9 बजे 14 मिनट तक रहेगी, इसके बाद पंचमी तिथि प्रारंभ होगी। इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजे 57 मिनट से शुरू होकर 12 बजे 53 मिनट तक रहेगा, और राहु काल का समय 5 बजे 38 मिनट से 7 बजे 23 मिनट तक रहेगा।
अग्नि और स्कंद पुराण के अनुसार, रविवार को व्रत रखने से सुख, समृद्धि, आरोग्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले रविवार से आरंभ करना शुभ माना जाता है। यह विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए लाभकारी है जिनकी कुंडली में सूर्य कमजोर है।
व्रत प्रारंभ करने के लिए, सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को स्वच्छ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर पूजन सामग्री रखें, फिर सूर्य देव की पूजा करें, व्रत कथा सुनें और फिर से उनकी पूजा करें। इसके बाद, सूर्य देव को तांबे के बर्तन में जल भरकर उसमें लाल फूल, अक्षत और रोली डालकर अर्घ्य देने से विशेष लाभ होता है।
इसके अतिरिक्त, रविवार के दिन आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने, सूर्य देव के मंत्र "ऊं सूर्याय नमः" या "ऊं घृणि सूर्याय नमः" का जप करने से भी विशेष लाभ मिलता है। रविवार को गुड़ और तांबे का दान भी महत्वपूर्ण है। इन उपायों से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता मिलती है।
एक समय भोजन करें, जिसमें नमक का सेवन न करें। गरीबों को दान करने का महत्व है। रविवार को काले या नीले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए। इस दिन मांस-मदिरा का सेवन, झूठ बोलना, किसी का अपमान करना, बाल या दाढ़ी कटवाना, तेल मालिश करना और तांबे के बर्तन बेचना वर्जित है। व्रत का उद्यापन 12 व्रतों के बाद किया जाता है।