क्या आरएसएस प्रमुख ने आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए नए सुझाव दिए?

सारांश
Key Takeaways
- आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देनी होगी।
- आत्मनिर्भरता को आर्थिक नीति में शामिल करना होगा।
- धर्म आधारित समग्र दृष्टिकोण का विकास मॉडल अपनाना चाहिए।
- समाज में देशभक्ति और संस्कृति के प्रति आस्था बढ़ रही है।
नागपुर, २ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को महाराष्ट्र के नागपुर में संगठन के मुख्यालय में विजयादशमी के अवसर पर अपने संबोधन में देश और समाज के विकास के लिए नए आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण को अपनाने का उल्लेख किया।
मोहन भागवत ने कहा कि वर्तमान में पर्यावरण का क्षरण, प्रकृति के प्रकोप, परिवारों और समाज में टूटन, तथा नागरिक जीवन में बढ़ता अनाचार और अत्याचार गंभीर समस्याएं बनकर उभर रही हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें अपने आर्थिक दर्शन पर आधारित एक नया और टिकाऊ आर्थिक मॉडल तैयार करना होगा।
उन्होंने कहा, "दुनिया की परस्पर निर्भरता को समझना आवश्यक है, लेकिन इसके साथ-साथ स्वदेशी और स्वावलंबन को प्राथमिकता देनी होगी।" इस बात की ओर उन्होंने इशारा किया कि हमें अपनी आर्थिक नीति में आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देनी होगी।
उन्होंने यह भी कहा कि विकास केवल आर्थिक प्रगति तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें धर्म आधारित समग्र दृष्टिकोण पर आधारित एक नया विकास मॉडल तैयार करना होगा। यह मॉडल सभी धार्मिक उपासना पद्धतियों से ऊपर उठकर सभी को जोड़ने वाला होना चाहिए।
डॉ. भागवत ने बताया कि देश में खासकर नई पीढ़ी में देशभक्ति की भावना और अपनी संस्कृति के प्रति आस्था लगातार बढ़ रही है। संघ के स्वयंसेवक और विभिन्न धार्मिक-सामाजिक संस्थान समाज के अभावग्रस्त वर्गों की निस्वार्थ सेवा में सक्रिय हो रहे हैं, जिससे समाज स्वयं सक्षम हो रहा है और अपनी पहल से समस्याओं का समाधान निकाल रहा है।
उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों का अनुभव है कि समाज में संघ और उसके कार्यों में भागीदारी की इच्छा बढ़ती जा रही है।
मोहन भागवत ने कहा, "हमें सक्रिय सामाजिक जागरूकता फैलानी होगी और जो लोग इस परिवर्तन के लिए काम करें, वे स्वयं उदाहरण बनें।"
उन्होंने आगे कहा कि हमें अपनी समग्र दृष्टि के आधार पर विकास का मार्ग बनाकर विश्व के सामने एक सफल उदाहरण प्रस्तुत करना होगा। "अर्थ और काम के पीछे अंधाधुंध भाग रही दुनिया को पूजा, रीति-रिवाज और धार्मिक संस्कारों से ऊपर उठकर ऐसा मार्ग दिखाना होगा जो सभी को साथ लेकर चले और सबकी एक साथ उन्नति सुनिश्चित करे।"