क्या समाज केवल कानून से नहीं, बल्कि संवेदना से भी चलता है? - मोहन भागवत
सारांश
Key Takeaways
- संवेदना समाज का मूल आधार है।
- अपनापन हमें एकजुट करता है।
- 50-60 वर्ष पहले के समाज में संवेदनाएँ महत्वपूर्ण थीं।
- समाज में करुणा और सामाजिक जिम्मेदारी आवश्यक हैं।
- अच्छा कार्य लंबे समय तक चलाना चुनौतीपूर्ण होता है।
बेंगलुरु, 7 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शुक्रवार को बेंगलुरु में नेले फाउंडेशन के रजत जयंती समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि एक उत्तम कार्य को 25-50 वर्षों तक बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होता है। जब हम अच्छे कार्य करते हैं, तो वह मार्ग सदैव थकाने वाला और कठिन होता है, लेकिन इतने लंबे समय तक ऐसा करना हमारे लिए आनंद का विषय है।
मोहन भागवत ने यह भी कहा कि समाज केवल कानून से नहीं, बल्कि संवेदना से भी चलता है। एक अपनापन होता है, जिसे हमें अपने हृदय में समाहित करके जागरूक रखना चाहिए। तभी हमारा समाज, भारतवर्ष, मजबूत होगा और हम विश्वगुरु बनेंगे। यह अपनापन ही हमारी पहचान है। सभी में एक ही अस्तित्व है; इसे हमारी परंपरा में ब्रह्म या ईश्वर कहा जाता है, जिसे आज विज्ञान भी मानता है।
मोहन भागवत ने आगे कहा कि जब हम भोजन करते हैं और कोई भूखा व्यक्ति हमारे पास आता है, तब हम या तो उसे खाना देंगे या उसे भगा देंगे। यदि वह नहीं जाता तो उसकी ओर पीठ करके खाना खाते हैं क्योंकि हम उसके सामने भोजन नहीं खा सकते। इसे संवेदना कहा जाता है। इंसान की संवेदना सभी के प्रति होती है।
उन्होंने कहा कि 50-60 वर्ष पहले जो लोग गाँव से शहर पढ़ाई के लिए आते थे, वे बताते थे कि उनकी ठहरने और खाने की व्यवस्था नहीं है। पहले घरों में सभी के लिए खाना रखा जाता था, ताकि कोई आए तो उसे खिलाया जा सके। पहले हमारा समाज संवेदनाओं पर निर्भर था, लेकिन अब हम जड़वादी सोच की ओर बढ़ रहे हैं।
मोहन भागवत ने कहा कि आज समाज की स्थिति ऐसी है कि इन कार्यों को औपचारिक रूप से करना आवश्यक है। यह सकारात्मक है कि लोग ऐसा कर रहे हैं। हालांकि, इन कार्यों का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। इससे लोगों में करुणा और सामाजिक जिम्मेदारी की जागरूकता बढ़नी चाहिए।