क्या मायावती के समर्थन से 2004 से 2014 तक रेल किराया बढ़ा? : संजय निषाद

सारांश
Key Takeaways
- मायावती के समय में कई बार रेल किराए में वृद्धि हुई।
- संजय निषाद ने सुरक्षा और सुविधाओं पर जोर दिया।
- धर्म परिवर्तन पर संजय निषाद ने निंदा की।
- राजनीतिक दलों को अपने मूल मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए।
- शांति और लोकतंत्र का महत्व बताया गया।
लखनऊ, 2 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती पर रेल किराए में बढ़ोत्तरी को लेकर सवाल उठाने पर यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री और निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि 2004 से 2014 के बीच मायावती के समर्थन से कई बार रेल किराया बढ़ाया गया।
कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बात करते हुए कहा, "किराया नहीं बढ़ना चाहिए, मैं इसका समर्थन करता हूं। हालांकि, सरकार को बेहतर सुविधाएं देने और सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। सुरक्षा महत्वपूर्ण है, समय कीमती है और समय की बचत आवश्यक है। मुझे लगता है कि हमारी सरकार में काफी समय से रेल किराया नहीं बढ़ा है, लेकिन उनके (मायावती) समय में हर बार किराया बढ़ जाता था। 2004 से 2014 तक मायावती के समर्थन से कई बार रेल किराया बढ़ाया गया है।"
सपा-कांग्रेस गठबंधन पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के बयान पर संजय निषाद ने कहा, "कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ समाजवादी पार्टी का जन्म हुआ। वे सिर्फ दल देखते हैं, नीति नहीं। 2017 में वे दोनों एक साथ आए और साइकिल आधी हो गई। अगर उन्होंने फिर से गठबंधन किया, तो साइकिल पूरी तरह साफ हो जाएगी।"
संजय निषाद ने आगे कहा, "मुझे लगता है कि सभी पार्टियां अपने मूल मुद्दे और विचारधाराओं से भटक गई हैं। कांग्रेस तुष्टिकरण पर उतारू है, तो सपा को उनके सलाहकारों ने उलझाकर रखा है। उन्हें दलित, शोषित और वंचितों की आवाज बनना चाहिए, लेकिन वे सिर्फ सतीश मिश्रा और अमर सिंह जैसे लोगों की आवाज बन गए हैं, और इसी वजह से वे पिछले दलित हो गए हैं।"
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की एक नाबालिग को केरल ले जाकर जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने की घटना पर संजय निषाद ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, "मैं इस घटना की निंदा करता हूं और भविष्य में ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए। धर्म एक जीने का आधार और संस्कार है।"
निर्दलीय सांसद चंद्रशेखर के मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने पर संजय निषाद ने कहा, "बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने लोकतंत्र में वोट जैसा एक हथियार दिया है। आप जो चाहें, वो कर सकते हैं। कांशीराम राजनीति में आए तो उन्होंने भी इस तरह की कोई घटना नहीं की। उन्होंने मिशन चलाकर लोगों को वोट के अधिकार के प्रति जागरूक किया, लेकिन वे (चंद्रशेखर) चोट की ताकत से सब कुछ करना चाहते हैं। यह लोकतंत्र के खिलाफ है। उन्हें अपनी विचारधारा बदलनी होगी। हम शांति चाहते हैं और बाबासाहेब ने भी हिंसा को जगह नहीं दी।