क्या संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाना चाहिए?

सारांश
Key Takeaways
- संजय निषाद ने 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की मांग की है।
- संविधान में इन शब्दों को शामिल करने का प्रस्ताव पहले खारिज किया गया था।
- कांग्रेस पर आरोप है कि उसने इन शब्दों को जबरन शामिल किया।
- इटावा में धर्म प्रचारक की घटना की कड़ी निंदा की गई है।
- सभी समुदायों के नेताओं को अपने समुदाय का मार्गदर्शन करना चाहिए।
लखनऊ, 27 जून (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री संजय निषाद ने सुझाव दिया है कि संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटा देना चाहिए। इससे पहले, आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर, दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने भी संविधान की प्रस्तावना में इन शब्दों की पुनरावलोकन की मांग की थी।
आरएसएस महासचिव की इस मांग पर संजय निषाद ने सहमति जताते हुए कहा कि ये शब्द संविधान सभा में दो बार बहस के लिए पेश किए गए थे, लेकिन दोनों बार अस्वीकृत कर दिए गए थे। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे खारिज किया था। फिर भी, जब कांग्रेस सत्ता में थी, तो इन शब्दों को संविधान में मजबूरन शामिल किया गया, जो कि गलत था। उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक धब्बा है, और इसके कारण आज मुस्लिम समुदाय गरीब हैं। हमारी सरकार में मुसलमानों को रोजगार दिया जा रहा है।
उन्होंने इस मुद्दे पर बहस की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि दोनों शब्दों को हटाना चाहिए।
संजय निषाद ने कांग्रेस की अंग्रेजी भाषा के प्रति दोहरी मानसिकता पर टिप्पणी की कि उन्होंने 60 वर्षों तक कोशिश की कि गांवों के बच्चे अंग्रेजी न पढ़ें, जिससे बच्चों को अंग्रेजी बोलने में कठिनाई होती थी।
इटावा मारपीट मामले में अखिलेश यादव के बयान पर संजय निषाद ने कहा कि क्या वह मंदिर जाकर दान नहीं देते? क्या वह स्वीकार करेंगे कि अब से वह पंडितों को दान नहीं देंगे?
अखिलेश यादव ने कहा था कि 'वर्चस्ववादी' यह घोषणा करें कि पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) की ओर से मिलने वाला चंदा कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
संजय निषाद ने इटावा में धर्म प्रचारक की घटना की कड़ी निंदा की और कहा कि लोकतंत्र में कानून को अपना काम करना चाहिए। यदि कोई घटना होती है, तो लोगों को कानून का सहारा लेना चाहिए, न कि जातीय या सांप्रदायिक जहर फैलाना चाहिए। हमें हर समुदाय के नेताओं को अपने समुदाय का मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है।