क्या संसद पर आतंकी हमले की 24वीं बरसी पर शहीदों को याद किया गया?
सारांश
Key Takeaways
- सुरक्षा बलों की बहादुरी को हमेशा याद रखना चाहिए।
- 13 दिसंबर 2001 का दिन भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है।
- शहीदों के बलिदान को नमन करना हमारा कर्तव्य है।
- लोकतंत्र की रक्षा में बलिदान की भावना को जीवित रखना आवश्यक है।
- यह हमला केवल एक इमारत पर नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा पर हमला था।
नई दिल्ली, 12 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस) भारतीय संसद भवन पर 13 दिसंबर को एक भयानक आतंकी हमला हुआ था। हालांकि, सुरक्षाबलों ने इस हमले को सफलतापूर्वक विफल कर दिया। इस हमले को रोकने में कई सुरक्षाकर्मियों और संसद के कर्मचारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी।
शहीदों की याद में शुक्रवार को राज्यसभा ने गहरा सम्मान प्रकट किया। जैसे ही सदन की कार्यवाही शुरू हुई, सभापति सी.पी. राधाकृष्णन ने इस दुखद दिन का उल्लेख कर सभी सदस्यों के साथ मिलकर शहीदों को नमन किया। राज्यसभा में शहीदों के प्रति मौन रखा गया।
राज्यसभा के सभापति ने कहा कि कल 13 दिसंबर एक काला दिन है, जब भारतीय संसद भवन पर आतंकियों ने हमला किया था। उन्होंने कहा, “13 दिसंबर 2001 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में अत्यंत दुखद है। उस दिन संसद भवन में कई सांसद और कर्मचारी मौजूद थे, लेकिन हमारे वीर सुरक्षा कर्मियों ने अद्वितीय साहस और बलिदान के साथ आतंकियों की योजनाओं को विफल किया और लोकतंत्र की रक्षा की।”
उन्होंने कहा कि बहुत से बहादुर जवान ऐसे थे जिन्होंने आतंकियों से लोकतंत्र के मंदिर की रक्षा करते हुए अपनी जान की परवाह किए बिना गोलियां झेलीं। उनकी निस्वार्थ सेवा आज भी हम सभी को प्रेरित करती है। सभापति ने उन सभी सुरक्षा कर्मियों के बलिदान को याद किया जिन्होंने हमले को रोकते हुए अपने प्राणों की आहुति दी।
सभापति ने कहा कि इन सभी वीरों ने भारतीय लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। उनके अनुरोध पर सभी सदस्यों ने अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर दो मिनट का मौन रखा, जिससे सदन गंभीर माहौल में शहीदों की स्मृति को नमन कर सके।
गौरतलब है कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह लगभग 11:30 बजे, पांच आतंकियों ने एक नकली स्टिकर वाली कार से संसद परिसर में प्रवेश किया। हमलावरों ने स्वचालित हथियारों से अंधाधुंध फायरिंग की। सुरक्षाबलों ने तुरंत मोर्चा संभालकर आतंकियों को रोक दिया।
सुरक्षाबलों की त्वरित कार्रवाई में सभी पांच आतंकवादी मारे गए। उनकी इस कार्रवाई के कारण उस समय संसद भवन में मौजूद सैकड़ों सांसदों, कर्मचारियों और मीडिया प्रतिनिधियों की जान बचाई जा सकी। राज्यसभा सांसदों का कहना है कि शहीदों के प्रति हमारी कृतज्ञता शब्दों में नहीं कह सकते। यह हमारा कर्तव्य है कि हम उनके बलिदान की भावना को जीवित रखते हुए अपने लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करें और उन्हें और मजबूत बनाएं। सदन के सदस्यों ने इस घटना की गंभीरता को याद करते हुए कहा कि संसद पर हमला केवल एक इमारत पर हमला नहीं था, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की आत्मा पर हमला था।
उन्होंने शहीदों के परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की और कहा कि देश उनकी बहादुरी को कभी नहीं भूल सकता।