क्या राज्य सरकार के संरक्षण में एशिया का सबसे बड़ा साल वन बर्बाद हो गया?

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क्या राज्य सरकार के संरक्षण में एशिया का सबसे बड़ा साल वन बर्बाद हो गया?

सारांश

झारखंड भाजपा ने सारंडा वन क्षेत्र में खनन के आरोप लगाए हैं। जानें इस पर सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है और क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर इसके प्रभाव।

Key Takeaways

  • सारंडा वन एशिया का सबसे बड़ा साल वृक्षों का जंगल है।
  • खनन के कारण जैव विविधता में गिरावट आई है।
  • सरकारी संरक्षण में पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने इसे संरक्षित अभयारण्य घोषित किया है।
  • स्थानीय आदिवासी समुदाय पर प्रदूषण का बुरा असर पड़ा है।

रांची, 30 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड भाजपा ने राज्य के प्रसिद्ध सारंडा वन क्षेत्र में लौह अयस्क के अत्यधिक खनन का आरोप लगाते हुए हेमंत सोरेन सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने बताया कि सारंडा वन क्षेत्र में पर्यावरण और पारिस्थितिकी को सरकारी संरक्षण के तहत लगातार हो रहे नुकसान के कारण ही सुप्रीम कोर्ट ने इसे संरक्षित अभयारण्य बनाने का आदेश दिया है।

भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि सारंडा एशिया में साल वृक्षों का सबसे बड़ा जंगल है, जिसमें पिछले वर्षों में खनन माफियाओं के दबदबे और सरकारी संरक्षण के चलते व्यापक दोहन हुआ। लगभग 82,000 हेक्टेयर में फैला यह वन क्षेत्र अपनी हरियाली और जैव विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध था, लेकिन आयरन ओर और अन्य खनिजों के अंधाधुंध खनन से हजारों हेक्टेयर वनभूमि बर्बाद हो गई और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ।

प्रतुल शाहदेव ने आंकड़े पेश करते हुए कहा कि जहां कभी 300 से अधिक प्रजातियों के पौधे होते थे, वहीं अब मुश्किल से 87 प्रजातियां बची हैं। इसी प्रकार, पक्षियों की प्रजातियां घटकर 148 से 116 रह गईं। हाथियों का पारंपरिक रास्ता पूरी तरह समाप्त हो गया है और 2010 में जहां 253 हाथियों की उपस्थिति दर्ज की गई थी, आज उनकी संख्या लगभग नगण्य हो गई है।

उन्होंने कहा कि खनन से उत्पन्न प्रदूषण ने पूरे क्षेत्र को प्रभावित किया है। बारिश में नदियां और झरने लाल पानी बहाते हैं और पीने के पानी में लौह अयस्क की धूल मिल जाती है। इसका असर स्थानीय आदिवासी समुदाय पर पड़ा है, जहां श्वसन रोग, त्वचा रोग और बुखार जैसी बीमारियां आम हो गई हैं। पिछले कुछ वर्षों में गर्मी की लहरों की तीव्रता भी बढ़ी है, जिसका सीधा संबंध वनों की अंधाधुंध कटाई और पर्यावरणीय असंतुलन से है।

प्रतुल शाहदेव ने आरोप लगाया कि हेमंत सरकार ने खनन कंपनियों और माफियाओं को लाभ पहुंचाने के लिए पर्यावरणीय मानकों की जानबूझकर अनदेखी की। उन्होंने दावा किया कि हेमंत सरकार के कार्यकाल में हजारों हेक्टेयर वनभूमि को गैर-वन उपयोग के लिए हस्तांतरित किया गया।

भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि उनकी पार्टी यह मांग करती है कि सारंडा में हुए अवैध खनन की उच्चस्तरीय जांच हो, दोषियों पर कार्रवाई की जाए और पूरे क्षेत्र को ‘नो-गो जोन’ घोषित किया जाए, ताकि भविष्य में कोई भी कंपनी बिना मानक पूरा किए खनन न कर सके।

Point of View

तो इसका असर न केवल स्थानीय समुदायों पर बल्कि देश के पर्यावरण पर भी पड़ता है। हमें इस पर गम्भीरता से विचार करने की जरूरत है।
NationPress
30/09/2025

Frequently Asked Questions

सारंडा वन क्षेत्र में खनन का क्या प्रभाव पड़ा?
खनन के कारण वन क्षेत्र की जैव विविधता में कमी आई है, और कई प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं।
भाजपा ने सरकार पर क्या आरोप लगाए हैं?
भाजपा ने आरोप लगाया है कि सरकार ने खनन माफियाओं को संरक्षण दिया है।
सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में क्या कहना है?
सुप्रीम कोर्ट ने सारंडा वन क्षेत्र को संरक्षित अभयारण्य घोषित किया है।