क्या सावन का प्रदोष व्रत और शिव वास योग महादेव को प्रसन्न करने का उत्तम दिन है?

सारांश
Key Takeaways
- भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए प्रदोष व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- 6 अगस्त को शिव वास योग का निर्माण होगा, जो पूजा के लिए विशेष अवसर है।
- साधक को धन, स्वास्थ्य, और सुख की प्राप्ति होती है।
- इस दिन की पूजा विधि में स्नान और स्वच्छ वस्त्र का महत्व है।
- दिनभर उपवास रखने से साधक को अधिक फल मिलता है।
नई दिल्ली, 5 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। सावन मास में प्रदोष व्रत और शिव वास योग का मिलन भगवान शिव की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस बार 6 अगस्त को सावन का अंतिम प्रदोष व्रत है, जिसमें मंगलकारी शिव वास योग भी बना हुआ है। इस दिन भगवान शिव का अभिषेक और पूजा करने से साधक की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन की सभी बाधाएं समाप्त होती हैं।
दृक पंचांग के अनुसार, शिव वास योग तब बनता है जब त्रयोदशी तिथि पर विशेष नक्षत्र और ग्रहों का संयोग होता है। इस योग में भगवान शिव कैलाश पर विराजमान रहते हैं और उनकी पूजा से साधक को शिव-शक्ति की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस बार सावन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 6 अगस्त को दोपहर 2 बजकर 8 मिनट से शुरू होगी। इस दौरान मूल नक्षत्र दोपहर 1 बजे तक और उसके बाद पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र रहेगा। चंद्रमा धनु राशि में संचार करेगा।
बुधवार को सूर्योदय 5 बजकर 45 मिनट पर और सूर्यास्त 7 बजकर 8 मिनट पर होगा। इस दिन शिव वास योग में भगवान शिव का अभिषेक करने से साधक को धन, स्वास्थ्य और सुख की प्राप्ति होती है।
प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इस व्रत को करने से साधक के कष्ट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। सावन मास में यह व्रत और भी फलदायी होता है, क्योंकि यह शिव की विशेष पूजा का महीना है।
धार्मिक ग्रंथों में प्रदोष के पूजन की विधि बताई गई है। इस दिन संध्या काल में पूजा का विशेष महत्व है। प्रदोष के दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, घी और बिल्वपत्र अर्पित करें। भांग, काला तिल, गुड़, इत्र, अबीर-बुक्का, फल और मिठाई के साथ अन्य पूजन सामग्री अर्पित कर दीप-धूप जलाएं।
इसके बाद भगवान की आरती कर आशीर्वाद लेना चाहिए। इसके बाद संध्या के समय प्रदोष काल में भी इसी प्रकार से पूजा करने के बाद शिव कथा सुननी चाहिए। इसके बाद शिव पंचाक्षर ' ओम नमः शिवाय' और महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। दिनभर उपवास रखें और फलाहार या सात्विक भोजन ग्रहण करें।