क्या आप जानते हैं सावन में महादेव अग्नि रूप में दर्शन देते हैं? जानिए ‘पंच भूत स्थलों’ में से एक मंदिर का 217 फुट ऊंचा ‘राज गोपुरम’

सारांश
Key Takeaways
- अरुणाचलेश्वर मंदिर की भव्यता और पौराणिक कथाएँ अनूठी हैं।
- यह मंदिर पंच भूत स्थलों में से एक है।
- इसका राज गोपुरम 217 फीट ऊँचा है।
- मंदिर में अग्नि लिंगम की पूजा होती है।
- ब्रह्मांड के अंधकार के दौरान महादेव का प्रकट होना इसकी पौराणिक कथा है।
तिरुवन्नामलाई, 31 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। महादेव के भक्तों और सावन के महीने का एक गहरा नाता है। यह महीना न सिर्फ देवाधिदेव महादेव की भक्ति में लिपटने का है, बल्कि उन सुंदर मंदिरों के दर्शन का भी है, जो देशभर में फैले हुए हैं। इनमें से एक प्रमुख मंदिर तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई पहाड़ी पर स्थित है, जिसे अरुणाचलेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।
यह पंच भूत स्थलों में से एक है, जहां महादेव अग्नि रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। यह मंदिर अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा और द्रविड़ स्थापत्य की भव्यता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।
तमिलनाडु के पर्यटन विभाग के अनुसार, अरुणाचलेश्वर मंदिर तिरुवन्नामलाई पहाड़ी की तलहटी में 24 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका 217 फीट ऊंचा राज गोपुरम दूर से ही भक्तों का ध्यान आकर्षित करता है। मंदिर की दीवारों पर चोल, विजयनगर और नायकर वंशों की कला से सजी नक्काशी प्राचीन कथाओं को जीवंत करती है।
मंदिर का गर्भगृह, जहां 3 फीट ऊँचा अन्नामलाईयार लिंगम स्थापित है, ऊर्जा का केंद्र है। इस अग्नि लिंगम के दर्शन से भक्तों का मन शांति और भक्ति से भर जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से उनकी आंखें बंद करने का अनुरोध किया। इससे ब्रह्मांड में हजारों वर्षों तक अंधकार छा गया। भक्तों ने कड़ी तपस्या की और भोलेनाथ ने शिव अरुणाचल पहाड़ी पर अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट होकर प्रसन्नता का अनुभव कराया, तभी से यह स्थान अरुणाचलेश्वर के नाम से पूजा जाता है।
मंदिर का डिज़ाइन द्रविड़, विजयनगर और चोल सहित अनेक स्थापत्य शैलियों का अद्भुत संगम है। यहाँ आठ शिवलिंग स्थापित हैं, जिनकी पूजा इंद्र, अग्नि, यम, वरुण जैसे देवताओं द्वारा की गई थी। ये लिंगम भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं।
हर साल कार्तिगई माह में मनाया जाने वाला कार्तिगई दीपम उत्सव इस मंदिर की शान है। पहाड़ी की चोटी पर विशाल दीप प्रज्वलन का दृश्य रात के आकाश को रोशन कर देता है। वहीं, मंदिर की हवा में मंत्रों की गूंज, फूलों और धूप की सुगंध भक्तों को अलौकिक अनुभव देती है।
तिरुवन्नामलाई शहर का प्राकृतिक सौंदर्य इस मंदिर की भव्यता को और बढ़ाता है। पहाड़ी की चोटी से दिखने वाला मनोरम दृश्य हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है।
9वीं शताब्दी में चोल वंश द्वारा स्थापित इस मंदिर को विजयनगर और नायकर शासकों ने और भव्य बनाया। ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित यह मंदिर द्रविड़, चोल और विजयनगर स्थापत्य का अनूठा संगम है। यह न केवल पूजा स्थल, बल्कि कला और आध्यात्मिकता का संगम भी है।