क्या शीला दीक्षित ने दिल्ली की तस्वीर को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?

सारांश
Key Takeaways
- शीला दीक्षित ने दिल्ली के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- दिल्ली मेट्रो और बुनियादी ढांचे में सुधार उनके कार्यकाल की पहचान हैं।
- उनका जीवन सादगी और समर्पण का प्रतीक था।
- राजनीति में गांधी परिवार के प्रति उनका निष्ठा उनके सफल करियर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी।
- उनकी विरासत आज भी दिल्ली के विकास में देखी जा सकती है।
नई दिल्ली, 19 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। शीला दीक्षित भारतीय राजनीति की एक ऐसी पहचान थीं, जिन्होंने दिल्ली को एक आधुनिक और विश्वस्तरीय नगर बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया। 31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में जन्मी शीला दीक्षित ने 15 वर्षों (1998-2013) तक दिल्ली की मुख्यमंत्री का पद संभालते हुए इस शहर की तस्वीर को पूरी तरह से बदल दिया। वह भारत की सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली महिला मुख्यमंत्री के रूप में इतिहास में दर्ज हुईं।
उन्होंने 2014 में केरल की राज्यपाल के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं।
उनका राजनीतिक सफर संयोग से आरंभ हुआ। उनके ससुर उमा शंकर दीक्षित स्वतंत्रता सेनानी और इंदिरा गांधी सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे।
शीला ने 1984 में उत्तर प्रदेश के कन्नौज से लोकसभा सांसद के रूप में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और 1984-1989 तक संयुक्त राष्ट्र महिला आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व किया। वे राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में संसदीय कार्य और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री रहीं। उनके राजनीतिक कौशल और गांधी परिवार के प्रति निष्ठा ने उन्हें कांग्रेस पार्टी में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने के बाद शीला दीक्षित ने शहर के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर जोर दिया। उनके कार्यकाल के दौरान दिल्ली मेट्रो का विस्तार, लगभग 70 फ्लाईओवरों का निर्माण और सार्वजनिक परिवहन को सीएनजी आधारित बनाना जैसे कदम उठाए गए।
दिल्ली मेट्रो को लागू करने में उनकी भूमिका को विशेष रूप से सराहा गया। उन्होंने ई. श्रीधरन के साथ मिलकर इस परियोजना को समय पर पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। श्रीधरन ने अपनी आत्मकथा में उल्लेख किया कि शीला दीक्षित की प्रशासनिक दृढ़ता और समर्थन के बिना दिल्ली मेट्रो का सपना साकार नहीं हो पाता।
उनके कार्यकाल में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय सुधार हुए। हालांकि, 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों ने उनकी छवि को कुछ हद तक प्रभावित किया। लेकिन, कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ।
2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद शीला दीक्षित ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वे मार्च 2014 से अगस्त 2014 तक केरल की राज्यपाल रहीं, लेकिन केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 2019 में उन्होंने दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में पुनः सक्रिय भूमिका निभाई और उत्तर-पूर्वी दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ा, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
शीला दीक्षित सादगी भरे जीवन के लिए जानी जाती थीं। उनकी बेटी लतिका दीक्षित ने एक साक्षात्कार में बताया कि मां घर पर साधारण खाना पसंद करती थीं और अक्सर परिवार के साथ समय बिताने का आनंद लेती थीं। वे खाली समय में किताबें पढ़ने और बागवानी की शौकीन थीं।
20 जुलाई 2019 को 81 वर्ष की आयु में हृदय गति रुकने से उनका निधन हो गया। शीला दीक्षित की विरासत आज भी दिल्ली की आधुनिकता, हरियाली और बुनियादी ढांचे में झलकती है। उनकी सादगी, समर्पण और विकास के प्रति प्रतिबद्धता उन्हें भारतीय राजनीति में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बनाती है।